Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 47
________________ लिए समर्पित प्रथम उपदेशक और धार्मिक शिक्षक थे । सम्भवतः इसलिए ही अधिक व्यक्तिगतरूप से जैनों का मन्दिर पाली कहलाता है। I अन्त में उद्धृत करने के लिए एक और ज्ञानी विद्वान् सर सन्मुखम शेट्टी, “यह एक बहुत रुचिकर ऐतिहासिक परिकल्पना के रूप में मेरे ध्यान में आई कि भारत में इस महान् धर्म का वास्तविक प्रारम्भ क्या होना चाहिये - उस दृष्टिकोण से इस महान् धर्म को देखते हुए मैं मानने के लिए बाध्य हूँ कि जब आर्यों का आगमन भारत में हुआ और जब वेदों का धर्म पंजाब में उत्पन्न हुआ था, तब जैनधर्म संभवतया भारत में प्रचलित प्राचीनतम धर्म था। मैं सोचता हूँ कि यह भगवान् महावीर के द्वारा छोड़ा गया असाधारण प्रभाव ही था, जिसने वास्तव में भगवान् बुद्ध का निर्माण किया । इस बात में बहुत गहरा महत्त्व है कि भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध समकालीन थे भगवान् महावीर के द्वारा स्थापित क्रान्ति के आदर्श को ही भगवान् बुद्ध के द्वारा अपनाया हुआ होना चाहिये । महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि महान् हिन्दु सन्तों जो हिन्दुधर्म को दक्षिण भारत में पुनः प्रचलित करना चाहते थे, उनको जैनधर्म का सर्वनाश करने के लिए क्रूर तरीकों का भी आश्रय लेना पड़ा। यह इस मजबूत पकड़ का प्रमाण है, जो जैनधर्म की दक्षिण भारत के लोगों पर रही होनी चाहिये । अद्यतन ऐतिहासिक शोध और पुरातत्त्व विभाग की खोजों ने यह मानने के लिए विद्वानों का मार्गदर्शन किया है कि प्राक् आर्यकाल में भारत में एक बहुत महान् सभ्यता फल-फूल रही थी, जिसे मैं सुविधा के लिए द्रविड़ सभ्यता नाम से पुकारूँगा। मैं सुविधा के लिए इस शब्द का प्रयोग यों ही करता हूँ, क्योंकि इन दिनों में जब हम द्रविड़ सभ्यता और ऐसे ही कुछ वाक्यांशों का प्रयोग करते हैं, तो अनावश्यक गर्मी उत्पन्न हो जाती है और मेरा स्वयं का मानना है कि 47

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