Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 32
________________ उनमें से कम जानकर यहाँ तक कहने लगे कि जैनधर्म बौद्धधर्म की एक शाखा मात्र है, साधारणतया क्योंकि महावीर और बुद्ध के जीवन की कुछ घटनाएँ संयोग से समान हैं। इस विषय के लेखकों में से शायद अधिक जानकार डॉ. हॉइनिल भी सच्चाई के निकटतर नहीं थे, जब उन्होंने कहा कि कोई भी संप्रदाय अपने नैतिक नियमों की मौलिकता के विषय में दावा नहीं कर सकता है, लेकिन ब्राह्मण तपस्वी उनके आदर्श थे, जिसमें से उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण परम्पराएँ और संस्थान उधार लिए थे (वाईड हॉइर्निल्स प्रेसिडेन्शियल ऐड्रेस, सीएएस, 1898)। यद्यपि जैनों और उनके पवित्र साहित्य के वर्तमान ज्ञान के साथ, यह सिद्ध करना कठिन नहीं है कि बौद्धधर्म या ब्राह्मणधर्म की शाखा होने से दूर जैनधर्म भारत के प्राचीनतम घरेलु धर्मों में से एक था। ब्राह्मण व्यवधान के बिना जैनों की सरल भक्ति और उनकी घरेलु प्रार्थना न केवल उनकी अत्यधिक प्राचीनता, बल्कि जो अधिक महत्त्वपूर्ण है, उनके अस्तित्व के स्वतंत्र स्वभाव को सिद्ध कर सकती है। और एफ. डब्ल्यु. थॉमस के अनुसार, “दूसरी तरफ जैनधर्म ने (अर्थात् बौद्धधर्म आदि के विपरीत) अपनी अखण्डता को हिन्दुधर्म से घिरे होने पर भी एक पृथक् संसार की तरह वर्तमान समय तक संरक्षित किया है।" कुछ न्यायिक अधिकारियों को उद्धृत करने के लिए, टी. एन. शेषगिरि औयर (एम. एल. ए.) पूर्व न्यायाधीश, मद्रास हाईकोर्ट कहते हैं “मेरी इच्छा नहीं है कि जैनधर्म को वेदों के आगामी समय का निर्धारित करूँ, यह उनका समकालीन हो सकता है। जैन हिन्दु मतान्तर नहीं है। मैं पूर्णरूप से इस तथ्य का समर्थन कर सकता हूँ कि सभी जैन वैश्य नहीं हैं। वे सभी जातियों और वर्गों से हैं।" महामहिम जस्टिस कुमारस्वामी शास्त्री, मुख्य न्यायाधीश, मद्रास हाईकोर्ट कहते हैं, “मैं मानना चाहूँगा कि आधुनिक शोध ने 32

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