Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 14
________________ और पार्श्व के अनुयायी क्रमशः गौतम और केशी के बीच उद्यान में मुलाकात हुई और लगभग रहस्यपूर्ण विषयों पर अच्छी चर्चा होने के बाद दोनों (धर्म) नेताओं ने सिद्धान्तों की आधारभूत एकता को स्वीकार किया और वे एक ही क्षेत्र के कार्यकर्त्ता हैं, इस प्रकार पूर्ण सहमत होकर उद्यान को छोड़ा । यह पुनः स्पष्ट करता है कि महावीर के आगमन से पहले एक पुरातन जैन मान्यता प्रचलित थी और जो उनके द्वारा प्रभावशाली रूप से उन्नत हुई । 8. अन्ततः जैनदर्शन की पुरातन विशेषताएँ हैं- उनकी सर्वचेतनवादी मान्यता, ब्रह्माण्ड के मुख्य संघटक तत्त्वों का अभाव, धर्म (जो वस्तुओं को गति में सहायक है) और अधर्म ( स्थिति का माध्यम या साधन) का जीव (आत्मा), पुद्गल (पदार्थ), आकाश (अवकाश) और काल (समय) के साथ तत्त्वों के समूह में समावेश, छह सनातन द्रव्य या ब्रह्माण्ड के तत्त्व | जैनदर्शन के इन तथ्यों के फलस्वरूप डॉ. जैकोबी उपसंहार करते हैं कि भारत में आर्यों की स्थापना के बहुत प्रारम्भिक समय में ही यह धर्म विकसित हुआ था और कहा कि जैनधर्म बौद्धधर्म की शाखा है, इस भ्रान्ति को यह तथ्य हमेशा के लिए नष्ट करता है । इस प्रकार झगड़े के बिना ही यह सिद्ध हुआ कि जैनधर्म सर्वथा स्वतंत्र और असाधारण रूप से प्राचीन धार्मिक व्यवस्था है, जो न केवल बौद्धधर्म की शाखा नहीं है, साथ ही उससे बहुत अधिक प्राचीन भी है I कुछ अन्य अनेक विद्वानों को उद्धृत करते हैं प्रो. रह्यस डेविड्स- “ सम्पूर्ण भारत के इतिहास में बौद्धधर्म के उद्भव के पहले से लेकर वर्तमान समय तक जैनधर्म एक सुव्यवस्थित सम्प्रदाय रहा है।" 14

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