Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 25
________________ में उत्पन्न हुए। बुद्ध से पूर्व भी जैनों का अस्तित्व था। सभी चौबीस तीर्थङ्कर क्षत्रिय थे और दो के अलावा सभी सूर्य वंश के इक्ष्वाकु थे।" राम सूर्यवंश के इक्ष्वाकु थे, इस विषय पर अब कोई प्रश्न नहीं है। जैन परम्परा के अनुसार वे अपने परिवार के अधिकतर सदस्यों के साथ जैनधर्म के अनुयायी थे। इतना ही नहीं, बल्कि रामचन्द्र, उनका भाई लक्ष्मण और उनका शत्रु रावण जैन परम्परा के 63 महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों (63 शलाका पुरुषों) में से तीन थे। वहाँ पर रामायण के राक्षस और वानरों को अर्द्धमानव, अर्द्धमानवपशु या दैत्यों की तरह नहीं, अपितु अत्यधिक सभ्य और संस्कारित विद्याधरों की जाति के मनुष्यों की तरह प्रस्तुत किया है, जो अधिकतर जिन के भक्त थे। ये प्रारम्भिक भारत के गैर आर्य निवासी साधारणतया अब द्रविड कहलाते हैं। पारगिटर के अनुसार यहाँ तक कि “सूर्यवंशी ही इस देश के नैसर्गिक निवासी थे और द्रविड परम्परा के थे।" और जैसा कि आगे दर्शाया जायेगा, इन प्रारम्भिक द्रविडों का धर्म जैनधर्म ही था। योगवशिष्ठ रामायण, जिसके लेखक के बारे में कुछ लोग रामचन्द्र के पारिवारिक पुरोहित् वशिष्ठ को और अन्य वाल्मिकी को उद्धृत करते हैं, उल्लेख करता है कि "राम जिन के समान बनना चाहते थे।"जो वाल्मिकी रामायण महाभारत की तरह ब्राह्मण पुनर्जीवन के युग का फल था और उस ही तरह अत्यधिक पूर्वाग्रहपूर्ण और पुनर्जीवकों की साम्प्रदायिक भावना का सच्चा प्रतिनिधित्व करती है और जो जैनों और जैनधर्म के किसी भी उल्लेख करने का सावधानीपूर्वक निषेध करती है, वह भी कुछ स्थानों पर स्खलित हुई है। उदाहरण के लिए वह उल्लेख करती है कि राम के पिता राजा दशरथ ने श्रमणों की सेवा की थी, जो कि भूषण की टीका के अनुसार दिगम्बर जैन 25

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