Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 11
________________ डॉ. बी.सी. लौ ने अपनी " हिस्टोरिकल ग्लीनिंग्स" में बुद्ध के निर्ग्रन्थों के साथ सम्बन्ध और उनके पारस्परिक धर्मान्तरणों का उदाहरण दिये हैं । जैसे- सिंह, सच्चक, श्रीगुप्त, ग्रहद्दिन, दीघतापसी, उपाली, अभय राजकुमार, विशाख इत्यादि । ■ सुमंगला विलासनी, ललित विस्तर, जातक, दाथा वंसो इत्यादि अन्य प्रसिद्ध पुस्तकों में भी जैनधर्म के उल्लेख हैं। 4. पुरानी बौद्ध पुस्तकों में सुप्रसिद्ध और जाने-माने जैनविद्या, अध्यात्मविद्या और आचार सिद्धान्तों के सन्दर्भ हैं दीघनिकाय के ब्रह्मजाल सुत्त में आत्मा से सहित शीतल जल अर्थात् जलकायिक जीवों के सन्दर्भ हैं । ■ उसी में आजीवक सिद्धान्त के जैन खंडन अर्थात् आत्मा के वर्ण (लेश्या का सिद्धान्त) के सन्दर्भ हैं। मज्झिमनिकाय में काय, वचन और मन इन तीन दण्डों का, जिसमें जैन विश्वास करते हैं और उपाली के धर्मान्तरण से भी सम्बन्धित, काय और मन में पापों की जैन संकल्पना का सन्दर्भ है। अंगुत्तर निकाय में जैन दिग्विरति व्रत और उपोसत्थ (प्रोषध) दिवस के सन्दर्भ हैं । दिग्विरति व्रत अर्थात् “आज मैं केवल इस निश्चित दिशा में जाऊँगा ।" उपोसत्थ- उपवास रखना, जिसमें साधारण शिष्य भी अपने विचारों और कृत्यों से साधुओं की तरह माना जाता है। उस ही निकाय में राजकुमार अभय और बुद्ध की मुलाकात से सम्बन्धित तपस्या के द्वारा पुराने या नये कर्मों के विनाश और पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति की जैन विचारधारा के संदर्भ हैं। महावग्ग में क्रियावाद के जैन सिद्धान्त के संदर्भ हैं I 11

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