Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ उसके समकालीनों के बीच श्रेष्ठ मार्गदर्शक रहे होंगे। होर्निल कहते हैं कि अपने महान् प्रतिद्वन्द्वी बुद्ध की तरह वे भी एक श्रेष्ठ प्रभावक व्यक्तित्व रहे होंगे। बौद्ध परम्परा के अनुसार महावीर बुद्ध के समय के अतिमहत्त्वपूर्ण छह तीर्थङ्करों में से एक थे । ब्राह्मण घेरे से बाहर, निगन्थ नातपुत्त, मक्खली गोशाल ( आजीवक संप्रदाय का प्रणेता), संजय बेलट्ठिपुत्त, अजित केशकंबलिन, पूर्ण कश्यप और पाकुद्ध कचायन प्रसिद्ध उपदेशक थे । प्राचीन बौद्ध सुत्त " महापरिनिब्बान सुत्त” (S.B.E. XI, p. 106) में वर्णित है कि महावीर के अनुयायी निर्ग्रन्थों को अनुयायी और शिष्य संघ के मुखिया, शिष्यों के गुरु, प्रसिद्ध और सिद्धान्त शालाओं के ख्यात प्रणेता कहते थे, जो जन-समुदाय के द्वारा अच्छे व्यक्ति के रूप में सम्मानित थे। 3. दोनों सम्प्रदायों के बीच परस्पर धर्मान्तरण के सन्दर्भ महावग्ग में वैशाली के लक्ष्वियों के सेनापति और भ. महावीर के साधारण अनुयायी सिंह के बारे में लिखा है जो उनके निषेध के विरुद्ध बुद्ध को देखने जाता है और उसके द्वारा धर्मान्तरित हो जाता है। मज्झिमनिकाय में भ. महावीर के साधारण अनुयायी उपाली का शरीर और मन के पापों का तुलनात्मक दुराचार विषय पर बुद्ध से विवाद के बाद के सन्दर्भ हैं। → श्रीमती राह्यस डेविड्स ने “ साम (भजन) ऑफ द अर्ली बुद्धिस्ट" (लंडन 1903) में बौद्धधर्म से जैनधर्म और इससे विपरीत धर्मान्तरणों के कई प्रमाण दिये हैं, जैसे- अज्जुन नामक एक बौद्ध अनुयायी जैनों से सम्पर्क करता है और उनके नियमों में प्रवेश करता है। कहा जाता है कि नातपुत्त के द्वारा राजकुमार अभय को विषम परिस्थिति में पढ़ाया गया था, इत्यादि । 10

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51