Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 126
________________ जीव- द्रव्य | १०६ कि वास्तविक सत्य मानसिक प्रत्ययों और बाह्य तथ्यों पर आधारित होता है । आत्मा का प्रत्यय यूनानी दर्शन में आत्मा का अर्थ - जीव की जीवनी शक्ति माना जाता था । प्लेटो ने अपने आत्मा सम्बन्धी विचार 'रिपब्लिक' के अन्तिम भाग में व्यक्त किये हैं । प्लेटो आत्मा को अमर मानता था । उसके अनुसार जीव के शरीर के समाप्त होने के बाद अथवा मृत्यु होने के पश्चात् जो कुछ शेष रहता है, वही आत्मा है । वस्तुतः आत्मा की अमरता के सम्बन्ध में प्लेटो पाइथागोरस के विचारों से अत्यधिक प्रभावित था । प्लेटो के अनुसार 'जीवात्मा और विश्वात्मा' में पर्याप्त समानता है । अन्तर केवल इतना है, कि जीवात्मा अपूर्ण है, विश्वात्मा पूर्ण है । प्लेटो ने आत्मा को एक समग्र माना है । आत्मा के विभिन्न कार्य हैं। प्लेटो के अनुसार जीवात्मा के तीन भाग हैं - बौद्धिक, अबौद्धिक और कुलीन । आत्मा का बौद्धिक भाग सरल एवं अविभाज्य होता है । कुलीन अबौद्धिक आत्मा । आत्मा के इस भाग के गुण एवं कार्य हैं - साहस, आत्मसम्मान और संवेग | अकुलीन अबौद्धिक आत्मा इसका सम्बन्ध जीव की विभिन्न वासनाओं से है । आत्मा को अमरता प्लेटो ने आत्मा को सरल, अविभाज्य और चेतन माना है । आत्मा की अमरता को सिद्ध करने के लिए प्लेटो ने अनेक तर्क प्रस्तुत किए हैं । मुख्य तर्कों को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं - ज्ञानमूलक तर्क, तत्त्वमूलक तर्क और नैतिक तर्क । प्लेटो यह मानता था कि बौद्धिक आत्मा को शाश्वत विज्ञानों का ज्ञान होता है । स्मृति के आधार पर भी आत्मा की अमरता सिद्ध हो जाती है । इस स्मृति ज्ञान का आधार आत्मा की अमरता ही है । वर्तमान जीवन अथवा जन्म से पूर्व भी आत्मा के विभिन्न जीवन थे । आत्मा की प्रकृति सरल तथा अविभाज्य है । सरल तत्त्व को न तो बनाया जा सकता है, और न ही विघटित किया जा सकता है । आत्मा की अमरता को सिद्ध करने के लिए प्लेटो ने मूल्यात्मक अथवा नैतिक तर्क भी उपस्थित किए हैं । मनुष्य सदा न्याय की मांग करता है। न्याय की व्यवस्था तभी सम्भव है, जबकि आत्मा स्थायी एवं अमर हो । नैतिक एवं बौद्धिक न्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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