Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 191
________________ १७४ | जैन-दर्शन के मूलभूत तत्त्व ४. मन के पाप के तीन भेद १. रति-अरति ३. मिथ्या दर्शन २. मायामृषा आस्रव के भेद १. बन्ध हेतुभूत आस्रव के पाँच भेद१. मिथ्यात्व २. अव्रत ३. प्रमाद ४. कषाय ५. अशुभ योग २. अव्रत आस्रव के पाँच भेद१. प्राणातिपात २. मृषावाद ३. अदत्तादान ४. मैथुन ५. परिग्रह ३. विषय आस्रव के पाँच भेद१. स्पर्शन आस्रव २. रसन आस्रव ३. घ्राण आस्रव ४. नेत्र आस्रव ५. श्रोत्र आस्रव ४. योग आस्रव के तीन भेद--- १. मन से आस्रव २. वचन से आस्रव ३. काय से आस्रव ५. अयतना आस्रव के दो भेद १. भण्डोपकरण आस्रव २. सूचि कुशाग्र मात्र आस्रव संवर के भेद १. मोक्ष हेतुभूत संवर के पाँच भेद १. सम्यक्त्व ३. अप्रमाद ५. शुभ योग २. व्रत ४. अकषाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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