Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 192
________________ परिशिष्ट : लघु नव तत्त्व प्रकरण | १७६ २. व्रत संवर के पांच भेद१. प्राणातिपात विरमण २. मृषावाद विरमण ३. अदत्तादान विरमण ४. मैथुन विरमण ५. परिग्रह विरमण विषय संवर के पांच भेद१. स्पर्शन संवर २. रसन संवर ३. घ्राण संवर ४. नेत्र संवर ५. श्रोत्र संवर ४. योग संवर के तीन भेद१. मन से संवर २. वचन से संवर ३. काय से संवर ५. यतना संवर के दो भेद१. भण्ड-उपकरण संवर २. सूचि-कुशाग्न मात्र संवर निर्जरा के भेद २. अवमौदर्य ४. रस-परित्याग ६. प्रतिसंलीनता १. बाह्य तप के छह भेद १. अनाहार ३. वृत्ति संक्षेप ५. काय-क्लेश आभ्यन्तर तप के छह भेद१. प्रायश्चित्त ३. वैयावृत्य ५. व्युत्सर्ग बन्ध के भेद २. विनय ४. स्वाध्याय ६. ध्यान १. बन्धभूत कर्म के चार भेद १. प्रकृति ३. अनुभाग २. स्थिति ४. प्रदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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