Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 194
________________ धार्मिक विश्वास की आधारभूमि है- दार्शनिक चिन्तन ! दर्शन ही "धर्म" को बौद्धिक आधार देता है, और आचार-नियमों को सन्तुलित रखता है / जैन धर्म का दार्शनिक आधार है - तत्व चिन्तन / षद्रव्य और नंवतत्व के मौलिक स्वरूप का परिज्ञान जैन धर्म, दर्शन के प्रत्येक जिज्ञासु के लिए उपयोगी ही नहीं, अनिवार्य भी है / हमारे धार्मिक विश्वास एवं आचार मर्यादा की आधार भूमि ही तत्व-चिन्तन है / प्रस्तुत कृति ,जैन दर्शन के मूलभूत तत्व में षद्रव्य एवं नवतत्व पर बहुत ही सारगर्भित, प्रामाणिक तथा अन्य दर्शन एवं, आधुनिक विज्ञान के साथ तुलनात्मक विवेचन किया है, विद्वान मनीषी श्री विजयमुनि जी शास्त्री ने / श्री विजयमुनि जी एक बहुश्रुत मनीषी हैं / आप भारतीय मनीषा के स्तंभ प्रज्ञापुरुष राष्ट्रसन्त श्री अमरमुनि जी के प्रमुख विद्वान शिष्य हैं / गुरु की प्रखर उर्वर चिन्तनशीलता आपको जैसे विरासत में प्राप्त हुई है / आपने जितनी गंभीरता के साथ संपूर्ण जैन वाङ्मय का अनुशीलन किया है, उतनी ही तटस्थता व गहराई से बौद्धपिट्क, वेद-वेदान्त, उपनिषद, गीता और शांकरभाष्यों का मूल के साथ पारायण किया है / इतिहास, न्याय और काव्य-शास्त्र भी आपके प्रिय विषय, रहे हैं / भारतीय एवं पाश्चात्य धर्म-दर्शन का समग्रता के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने वाले विरले विद्वानों में आपका अग्रणी स्थान है / दिवाकर प्रकाशन A-7 अवागढ़ हाऊस एम. जी. रोड आगरा - द्वारा मुद्रित

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