Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 176
________________ परिशिष्ट : प्रमाण | १५६ १. प्रत्यक्ष-अक्ष का अर्थ है-आत्मा और इन्द्रिय । इन्द्रियों की सहायता के बिना, आत्मा के साथ सीधा सम्बन्ध रखने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है । जैसे अवधि, मनःपर्याय और केवल । इन्द्रियों से सीधा सम्बन्ध रखने वाला अर्थात् इन्द्रियों की सहायता से आत्मा के साथ सम्बन्ध रखने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष कहा जाता है । जैसेकि पाँच इन्द्रियों से होने वाला प्रत्यक्ष । २. अनुमान-लिंग अर्थात् हेतु के ग्रहण और सम्बन्ध अर्थात् व्याप्ति के स्मरण के पश्चात् जिससे पदार्थ का ज्ञान होता है, वह अनुमान प्रमाण है। साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं। ३. जिसके द्वारा सदृशता से उपमेय पदार्थों का ज्ञान होता है, उसे उपमान प्रमाण कहते हैं। जैसेकि गवय, गाय के समान होता है। ४. आगम-शास्त्र के द्वारा होने वाला ज्ञान, आगम प्रमाण कहलाता है। इस प्रकार प्रमाण के चार भेद हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम । ये चार भेद अन्य सम्प्रदायों में भी अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । भगवतीसूत्र तथा अनुयोगद्वार में भी ये चार प्रमाण हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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