Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 174
________________ हिन्दी टिप्पण पारिभाषिक शब्दकोष लक्षण जीव के लक्षण से परिज्ञात होता है, कि वह अजीव से भिन्न वस्तु । मिश्रित वस्तुओं के भेद परिज्ञान के लिए लक्षण का परिबोध आवश्यक है । "येन वस्तु लक्ष्यते, तल्लक्षणम् ।" अर्थात् जिसके द्वारा वस्तु का भेद ज्ञान हो, वह लक्षण कहा जाता है । अतः अनेक मिश्रित पदार्थों में से किसी एक पदार्थ को पृथक् करने वाले को लक्षण कहते हैं । उसके दो भेद हैं-आत्मभूत लक्षण और अनात्मभूत लक्षण । - १. आत्मभूत लक्षण- - जो लक्षण वस्तु के स्वरूप में एकीभूत हो, उसे आत्मभूत लक्षण कहते हैं । जैसे अग्नि का लक्षण उष्णता । आत्मभूत लक्षण का अर्थ है, जो कभी अपने लक्ष्य से दूर न हो । जीव का आत्मभूत लक्षण उपयोग है, अर्थात् चैतन्य है, जो कभी जीव से दूर नहीं होता । इसको असाधारण धर्म भी कहते हैं । २. अनात्मभूत लक्षण - जो लक्षण वस्तु के स्वरूप में एकीभूत न हो, उसे अनात्मभूत लक्षण कहते हैं । जैसे दण्डेन दण्डी पुरुषः । छत्रेण छत्री पुरुषः । तिलकेन पण्डितः । दण्ड पुरुष से अलग है । छत्र छत्री से भिन्न है । तिलक पण्डित से पृथक् होता है । फिर भी ये लक्षण व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों से अलग करते हैं । अतः ये लक्षण की कोटि में तो परिगणित हो ही जाते हैं । Jain Education International ( १५७ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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