Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 167
________________ १५० | जैन-दर्शन के मूलभूत तत्त्व २. आभ्यन्तर तप के छह भेद : १. प्रायश्चित्त २. विनय ३. वैयावृत्य ४. स्वाध्याय ५. व्युत्सर्ग ६. ध्यान भोजन ग्रहण न करना अनाहार है । कम भोजन करना ऊनोदर तप है । वत्तियों का संकोच करना । रसों को छोड़ना । काय कष्ट सहन करना । एक स्थान पर स्थिर होना । यह छह प्रकार का बाह्य तप कहलाता है। व्रतों में दोष लगने पर दण्ड लेना, शुद्धि के लिए। गुरुजनों का विनय करना । बाल, वृद्ध और रुग्ण की सेवा करना । शास्त्रों का शुद्ध पाठ करना । आभ्यन्तर और बाह्य परिग्रह का त्याग करना । योगों की एकाग्रता करना। यह छह प्रकार का आभ्यन्तर तप होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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