Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 170
________________ मोक्ष-तत्त्व मोक्ष आत्मा को परम शुद्ध अवस्था है। संसार के समस्त बन्धनों का नष्ट हो जाना ही तो मोक्ष है । समस्त कर्मों का क्षय हो जाना-मोक्ष कहा जाता है । चार घाती कर्मों के क्षय हो जाने पर जीव को केवलज्ञान होता है। घाती कर्मों में सबसे पहले मोहकर्म का क्षय होता है । बन्ध के कारणों का अभाव तथा निर्जरा के द्वारा ज्ञानावरण आदि समस्त कर्मों का अत्यन्त अभाव होना - मोक्ष है। आत्मा से समस्त कर्मों का सम्बन्ध छूट जाना, मोक्ष है, और वह मोक्ष संवर तथा निर्जरा के द्वारा प्राप्त होता है । मुक्त आत्मा फिर बन्धन बद्ध नहीं होता। ___ मोक्ष के दो भेद हैं-द्रव्य मोक्ष और भाव मोक्ष । आत्म-प्रदेशों से पुद्गल परमाणुओं का पृथक् हो जाना-द्रव्य मोक्ष है। कषाय भावों का सर्वथा क्षय हो जाना-भाव मोक्ष है। __ भारत के सभी आस्तिक दर्शनों ने मोक्ष स्वीकार किया है। मोक्ष, मुक्ति और निर्वाण-ये सब मोक्ष के पर्यायवाचक शब्द हैं। न्यायवैशेषिक, सांख्य-योग और वेदान्त आत्मा की परम शुद्ध दशा को मोक्ष कहते हैं। बौद्ध क्षणिकवादी होकर भी निर्वाण को स्वीकार करते हैं । निर्वाण अभावात्मक नहीं, भावात्मक है । जैन दर्शन में मोक्ष-स्थितिविशेष और स्थानविशेष भी है। मोक्ष के भेद १. मोक्ष के दो भेद १. द्रव्य मोक्ष ( १५३ ) २. भाव मोक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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