Book Title: Jain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj Author(s): Jagdishchadnra Jain Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan View full book textPage 9
________________ (=) 1 की आवश्यकता है ।" लेकिन जैसे कहा जा चुका है, कितने ही प्रसंगों पर, परिस्थितियोंवश वे अपने मार्ग से स्खलित भी हो जाते थे, यद्यपि इसे स्वस्थ मनोवृत्ति का परिचायक हरगिज नहीं समझा जाता था । उन्हें सदा जागृत रहने और क्षण भर के लिए भी प्रमाद न करने का ही उपदेश था। इस प्रकार की स्खलनाओं का उल्लेख छेदसूत्रों में अनेक स्थलों पर किया गया है । लेकिन इससे उन सूत्रों का महत्व कम नहीं होता और न जैन श्रमण संघ की दुर्बलता ही सिद्ध होती है । इससे यही ज्ञात होता है कि उन लोगों ने मानव कमजोरियों को न छिपाकर बड़े साहसपूर्वक उनका सामना करते हुए जैन संघ को श्रमण संघ के पुरस्कर्ता इस दिशा में हिम्मत से काम न लेते तो निस्संदेह जैनधर्म का इतिहास कुछ और ही होता । इसमें संदेह नहीं कि छेदसूत्रों के अध्ययन के बिना जैन श्रमण संघ का ऐतिहासिक क्रमिक विकास ठीक-ठीक समझ में नहीं आ सकता । सुदृढ़ बनाया । यदि जैन परिस्थितियों पर काबू प्राप्त करने के लिए मनुष्य जीवनोपयोगी नियमों का निर्माण करता है । उदाहरण के लिये, बौद्ध सूत्रों में उल्लेख है कि "वर्षा ऋतु में हरित तृरंगों का संमर्दन करने से एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा होती है । ऐसे समय पक्षी भी वृक्षों पर घोंसला बनाकर रहते हैं । अतएव बौद्ध भिक्षुओं को वर्षावास में एक स्थान पर रहना उचित है" (महावग्ग ३, वस्सूपनायि कक्खंध ) । इसी से मिलता-जुलता उल्लेख जैनों के बृहत्कल्पभाष्य में मिलता है। यहां कहा गया है कि "वर्षाकाल में गमन करने से वृक्ष की शाखा आदि के सिर पर गिर जाने, कीचड़ में रपट जाने, नदी में बह जाने अथवा कांटा आदि लग जाने का भय रहता है ।" कहने की आवश्यकता नहीं, जैन और बौद्ध धर्म का प्रचार मगध ( बिहार ) से आरम्भ हुआ था, और वर्षा ऋतु में, विशेष कर, उत्तर बिहार की बागमती, कोसी और गंडक आदि नदियों में बाढ़ के कारण वहां की क्या भयंकर दशा हो जाती है, इसे भुक्तभोगी ही जान सकते हैं । रात्रिभोजनत्याग के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार के जनोपयोगी व्यावहारिक उल्लेख मिलते हैं । मज्झिमनिकाय के लकुटिकोपमसुत्त में कहा है कि रात्रि में भिक्षा के लिए जाते समय बौद्ध भिक्षु अंधेरे में ठोकर खाकर गिर पड़ते थे और स्त्रियां उन्हें देखकर चोत्कार करने लगती थीं। ऐसी दशा में बुद्ध भगवान् ने अपने भिक्षुओं को विकाल भोजन का निषेध किया है । बृहत्कल्पभाष्य में भी कहा है कि रात्रि अथवा विकाल में भोजन करने से गड्ढे आदि में गिरने, सांप अथवा कुत्ते से काटे जाने, बैल से मारे जाने अथवा कांदा आदि लगने का डर रहता है । इस प्रसंग पर कालोदाई नामक भिक्षु की कथा दी है। रात्रि के समय किसी 1Page Navigation
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