Book Title: Jain 1973 Book 70 Paryushan Visheshank
Author(s): Gulabchand Devchand Sheth
Publisher: Jain Office Bhavnagar

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Page 73
________________ पद पर पहच नाती है। इस क्रमिक विकास की. ऐसा सुव्यस्थित रुप एक विकसित समाज उसे आसानी से समझने के लिये आठ श्रेणियां के धर्म का ही हो सकता । अन्धविश्वास आधाअर्थात आठ यो। दृष्टियां बताई गई है। योग रित मान्यताएं विकसित समाज स्वीकार नहीं का अर्थ पूर्ण विकास का मागे है। इसी प्रकार कर शकती। आत्मा की ऋमिक शद्धि को १४ कक्षाएं बनाई गई हमारे शोध संस्थानो तथा शोध विद्यार्थियों है. यही १४ गुपः स्थान है और अन्तिम १४ वी का जैन धर्म के इसी रुप को जो इस जीवन में कक्षा पूर्णतः शुर आत्मा की परमात्मा पद पर भी सफलता का हेतु हैं, अपने निबंधों में बताना पहुची हुई आता को है। चाहिये । सिद्धान्तता शाश्वत सत्य है पर मनुष्य आत्मा अमः मानी गई है और शरीर की बुध्धि और सिध्धांतों की उपयोगिता की नाशवान । कर्म सिद्धांत के अनुसार क्रिया प्रतिक्रिया द्रष्टि देशकाल की परिस्थितियों के साथ बदलती के परिणाम स्वप आत्मा जन्म जन्मांतरमे जाती है। आज के समय में धर्म की, इसी जीवन भटकती हुई जा अपने ही पुरुषाथ से योग में उपयोगिता की और उपेक्षा रखते हुये उसे दृष्टि की और रण स्थाने, की श्रेणियों पर आगे केवल परोक्ष परलेाक के लिये ही उपयोगी बनाना बढते बढते अन्तिम कक्षा पर पहुंच जाती है धर्म के लिये उपेक्षा का जन्म देता है। विद्वानों तब जन्म मरण का, जन्म जन्मस्तरों का अंत · का इस ओर ध्यान देना चाहिये। आज बुद्धिवाद हो जाता है और यह अपने स्वभाविक गुण अनन्त कालमें धर्म केवल रूढी की तरह बताने से ग्रहण नहीं ज्ञान अनन्त सुख इत्यादि प्राप्त कर पूर्ण ब्रह्म, किया जा सकता है, उसकी वास्तविक जीवन में परमात्मा बन जता हैं । उपयोगिता पर भार देना चाहिये। * ૧ | મહા પ્રાભાવિક ર૫૦૦ વર્ષ પ્રાચીન બાવન જિનાલય साधना અજારી તીર્થની યાત્રાએ પધારે |•egideR NIRAdh .वासो પિંડવાડા (રાજસ્થાન)થી બે માઈલ આબુરોડ તરફ હાઈવે ઉપરથી .eals { ૧ માઈલ દૂર આવેલ શ્રી અજારી તીર્થ સંપ્રતિ મહારાજાએ બંધાવેલું ક્રયસાણા છે. અને ૧૪મા સિકામાં શેઠ ધરણુશાએ જીર્ણોદ્ધાર કરાવેલ હતું. અહીં* ચરવના • સંથારીયા સાપડા | કલિકાલસર્વજ્ઞ આચાર્યભગવંતશ્રી હેમચન્દ્રસૂરીશ્વરજી મહારાજાને sઘારીયા धाom સરસ્વતી પ્રસન્ન થઈ હતી. સરસ્વતી દેવીનું સુંદર મંદિર પણ છે. ચ્ચિદીના વરખ,પરવાળોદરબા છેલ્લે જીર્ણોદ્ધાર સ્વર્ગસ્થ પૂ. આટદેવશ્રી વિજયપ્રેમસૂરીશ્વરજી મ.ના આ કલર-કકિની માળાमोरपी-642ी हासभा ઉપદેશથી સં. ૨૦૧૮થી ચાલુ કરાવી સં. ૨૦૧૭માં પૂ. આ.દેવશ્રી 3 અનાની | વિજયરામચન્દ્રસૂરીશ્વરજી મ.ની નિશ્રામાં પ્રતિષ્ઠા થઈ છે. સુંદર માજ-જવણી-પાપા ધર્મશાળામાં રહેવા તથા જમવાની ઉત્તમ સગવડ છે. તે આ તીર્થના માપવા તેમજદિપાવી કામ વગેરે માટે | એકેએક ચમત્કારિક જિનબિંબ તથા મૂલનાયક શ્રી મહાવીરસ્વામીના मेघन सselsa Nन ४री अपन सण ४२१. स्ट-istryruER-NE- લિ. શેઠ કલ્યાણજી સૌભાગચંદજી જૈન પેઢી પિંડવાડા (રાજસ્થાન) .भा ५५५ नि : [५२५

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