Book Title: Isibhasiyaim ka Prakrit Sanskrit Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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७६
इसिभासियाई पगरेति प्रकरोति 31.69.13 पज्जवे पर्यायान् 5.11.17 गा.2, 20 -पग्गह- -प्रग्रह- (देखो, णाणप्पग्गहपभट्ठे| गा.4 णाणप्पग्गहसंबन्धे)
| -पज्जोविता -प्रद्योतिताः (देखो, पग्गहा प्रग्रहाः 26.57.17 गा.9 पुरिसपज्जोविता) -पघातं -प्रघातम् (देखो, संकुप्पघातं) | -पडण- -पतन- (देखो, सडण-पडण-पचिण्णं -प्रचीर्णम् (देखो, दुप्पचिण्णं)| विकिरण-विद्धसणधम्म) पच्चओ प्रत्ययः 9.19.10 गा.16 | पडते पतति 28.61.25 गा.14 पच्चक्खं प्रत्यक्षम् 10.23.7;/ पडिसुका प्रतिश्रुत् 24.49.16 गा.18 34.73.28, 75.2, 9
पडिकारं प्रतिकारम् (देखो, अप्पडिकारं) -पच्चक्खात- -प्रत्याख्यात- (देखो, | पडिच्छण्णं प्रतिच्छन्नम् (देखो,
अप्पडिहतापच्चक्खातपावकम्मा) ससीतारापडिच्छण्णं) पच्चणुभवमाणे प्रत्यनुभवमानः 9.17.6] -पडिघातं -प्रतिघातम् (देखो, पच्चलो देश्य 38.87.11 गा.19 | गण्डबन्धणपडिघात) -पच्चाण- -प्रच्छादन- (देखो, पडिच्छती प्रतीच्छति 24.49.8 गा.14 वेसपच्चाणसंबद्धे)
पडिच्छन्ना प्रतिच्छनाः 4.7.27 गा.1 पच्चाणं प्रच्छादनम् 38.87.19 गा.23 | पडिजागरेमाणे प्रतिजागरयमाणः पच्चायन्ति प्रत्यायान्ति 20.39.15 37.83.18 पच्चुप्पण्णगवेसका प्रत्युत्पन्नगवेषकाः | -पडिण्णे -प्रतिज्ञः (देखो, अपडिण्णे)
15.31.17 गा.16; 45.95.25 गा.9| -पडिन्नभावाओ -प्रतिज्ञभावात् (देखो, पच्चुप्पण्णरसे प्रत्युत्पन्नरसे 15.31.91 अपङिनभावाओ) ___गा.12; 24.51.5 गा.29; 41.91.13 | पडिबद्ध प्रतिबद्धः 6.13.19 गा.9 गा.4; 45.95.17 गा.5
पडियारेण प्रतिकारेण 15.31.2 गा.8 पच्चुप्पण्णाभिधारए प्रत्पुत्पन्नाभिधारकः| पडिरूवाइं प्रतिरूपाणि 25.55.7 35.77.20 (4 बार)
-पडिरूवाओ -प्रतिरूपाः (देखो, पच्चोत्तरित्ताणं प्रत्यवतीर्य 5.11.12 | संगतगत...पडिरूवाओ) पच्छा पश्चात् 49.14 गा.9, 16 गा.10;/ -पडिवण्णा -प्रतिपन्नाः (देखो,
15.31.18 गा.16; 41.91.11| अन्तलिक्खपडिवण्णा) गा.3; 45.95.26 गा.9
-पडिवना -प्रतिपन्नाः (देखो, विप्पडिपज्जण्णे पर्जन्यः 33.71.24 गा.4 . वन्ना) -पज्जवे -पर्ययः (देखो, आतापज्जवे, पडिसेवणं प्रतिसेवनम् 35.79.13 गा.15 आयापज्जवे)
| पडिसेविस्सामि प्रतिसेविष्यामि
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