Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala Merath

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Page 16
________________ से यहाँ वहाँ की चिंता नही है। ध्यान भी बड़ा भी बड़ा अच्छा जग गया हो ऐसी विशुद्ध स्थिति में कभी मुंह बंद हुए में एक गुटका आ जाता है तो बड़ी शान्ति और संतोषको व्यक्त करता है। और क्या होगा जो उनके कंट में से झरता है। उन्हे प्यासकी भी वेदना नही, ठंड गर्मी की वंदना नही । जो इस औदारिक शरीर में रोग होता है, वेदना होती यह कुछ भी देवों के शरीर में नही है। स्वर्गसुख से आत्मबाधा भैया ! स्वर्गसुख का यह विश्लेषण सुनकर तो कुछ अच्छा लग रहा होगा पहिले विश्लेषण की अपेक्षा, लेकिन एक कानून और बताता दें, जहाँ क्षुधा, तृषा, ठंड, गर्मी की वेदना न हो वहाँ मुक्ति असम्भव है। जहाँ यं वेदनाएँ चलती है उस मनुष्य पर्याय से मुक्ति सम्भव है। इससे भी क्या कारण है? जहाँ इन्द्रियजन्य सुख की प्रचुरता है वहाँ वैराग्य की प्रचुरता नही होती है। जैसे यहाँ हम मनुष्यो में भी देखते है ना, जो बड़े आराम में है, समृद्धि में है, वैभव में है ऐसे पुरूषो के वैराग्य की वृत्ति कम जगती । वह नियम यहाँ तो नही है क्योकि मनुष्य जाति का मन विशिष्ट ही प्रकार का हैं। वह सुख भोगते हुए में भी विरक्त रह सकता है, उसे परित्याग करके आत्ममग्न हो सकता है। ये देव दुःखी भी नही है और उनके सुख का जो साधन है उसका परित्याग करने में समर्थ भी नही है । - स्वर्ग सुखमे लौकिक विशेषता स्वर्ग के देवों के एक आफत यह भी लगी है कि जो बहुत छोटे देव है, उन देवो के, उनकी अपेक्षा में जो पापी देव है मान लो तो, उनके भी कम से कम 32 देवांगनाएँ होती है। यहाँ तो एक स्त्री का दिल राजी रखने में बड़ी हैरानी पड़ती है, साड़ी, साड़ी ही खरीदने में पूरी समस्या नही सुलझ पाती है। वहाँ 32 देवाँगनावो का मन रखने के लिए कितनी तकलीफ उठाने की बात है ? यहाँ तो स्त्री मनुष्य ही है ना, सो वे संतोष कर सकती है पर उन देवांगनावो के कहाँ संतोष की बात है? जब बहुत छोटे देवों का यह हाल है तो जो बड़े देव है, इन्द्रादिक है उनके तो हजारो का नम्बर है। एक बात और है कि जहाँ एक देवी मरी उसी समय उसी स्थान पर कुछ समय बाद दूसरी देवी उत्पन्न होती है और वह अन्तर्मुहूर्त में ही पूर्ण जवान हो जाती है। देवोंमे ऐसा नियम है। तो छुटकारा होने में बड़ी कठिनाई है, लेकिन यहाँ सुखकी बात बता रहे है कि उनके ऐसा सुख है। स्वर्ग सुखों में एक विशेषता यह भी है कि सागरों पर्यन्त, करोड़ो वर्षो पर्यन्त, दीर्घ काल तक वे सुख भोग करते है । वे कभी बूढे होते नही, सदा जवान ही रहते है। इन्द्रिय विषयो का सुख सदा उन देवो के प्रबल रहता है और वे सागरो पर्यन्त ऐसा ही सुख पाते है। देवो का युख साधारणजनों के लिए उपादेय बन जाता है किन्तु जो तत्वज्ञानी पुरूष है, जो शुद्ध आनन्द का अनुभवन कर चुके है उनमें विषयो की प्रीति नही हो सकती है। - देवो के सुख की उपमा - उन देवो का सुख किस तरह का है कुछ नाम बतावो । कोई मनुष्य उस तरह का सुखी हो तो उसका नाम लेकर बतावो । है नही ना कोई? तो यह कहना चाहिए कि देवो का सुख देवो की ही तरह है। जैसे साहित्य में एक जगह कहते है। कि राम रावण का युद्ध कैसा हुआ, कुछ दृष्टान्त बतावो । तो बताया है कि राम 16

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