Book Title: Indriya Gyan
Author(s): Sandhyaben, Nilamben
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 235
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है * देखो, एक ओर ऐसा कहना कि त्रिकाली सामान्य वस्तु जो परमस्वभावभाव शुद्ध ज्ञायकभाव उसमें तो गति नहीं, गुणभेद भी नहीं और पर्याय भी नहीं है; और यहाँ कहा कि द्रव्य उन उन विशेषों के समय तन्मय है। ये कैसी बात ? समाधान : भाई! परमस्वभावभाव शुद्धज्ञायकभाव त्रिकाली सामान्य वस्तु की दृष्टि कराने के लिए कहते हैं कि उसमें गति नहीं है, गुणभेद भी नहीं हैं और पर्याय भी नहीं है और यहाँ उन उन विशेषों के समय उनमें द्रव्य वर्त रहा है, वे विशेष उस समय उस द्रव्य के हैं-यह ज्ञान कराने के लिए कहते हैं कि उन उन विशेषों के काल में द्रव्य उनमें तन्मय है। जहाँ जो अपेक्षा हो उसे यथार्थ समझना चाहिए।।३९७।। (श्री अध्यात्म प्रवचनरत्नत्रय, पृष्ठ १५१, पैराग्राफ ३) * अहाहा...! कहते हैं-द्रव्य श्रुत वह ज्ञान नहीं है, क्योंकि द्रव्यश्रत अचेतन है; इसलिए ज्ञान और श्रुत में भिन्नता है, जुदाई है। क्या मतलब ? कि द्रव्यश्रुत से यहाँ ( आत्मा में) ज्ञान होता है-ऐसा नहीं है। तो किस प्रकार है ? सुनने वाले श्रोता को अपने उपादान की योग्यता से ज्ञान होता है, और द्रव्यश्रुत तो उस समय निमित्त मात्र है। और द्रव्य श्रुत का ज्ञान वह परलक्षी ज्ञान है, स्वलक्षी नहीं है; इसलिए द्रव्य श्रुत का ज्ञान भी वास्तव में अचेतन है।।३९८ ।। (श्री प्रवचनरत्नाकर, भाग १०, पृष्ठ १८१, पैराग्राफ ५) * परमार्थ वचनिका में आता है कि जितना परसत्तावलंबी-ज्ञान है उस ज्ञान को वास्तव में मोक्षमार्ग नहीं कहते हैं। द्रव्यश्रुत वाणी जो है तो जड़ है, वो आत्मा नहीं है और उसको सुनने से आत्मा (-ज्ञान) प्रकटता है-ऐसा भी नहीं है। परन्तु जो श्रुत विकल्प है उसका लक्ष छोड़कर २०१ *ज्ञेय ज्ञेय को जानता है, ज्ञान आत्मा को जानता है Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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