Book Title: Indriya Gyan
Author(s): Sandhyaben, Nilamben
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 299
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है जीव) अंश से बाहर तो जाते ही नहीं, इतनी मर्यादा में रमत है।।५८४ ।। (श्री द्रव्यदृष्टि प्रकाश, भाग ३, पृष्ठ १०६ , बोल ५४७ ) * अज्ञानी को ऐसा रहता है कि मैं कषाय को मंद करते-करते अभाव कर दूंगा। लेकिन ऐसे तो कषाय का अभाव होता ही नहीं है। स्वभाव के बल बिना कषाय टलता नहीं। मैं कषाय को मंद करता जाऊँगा और सहनशक्ति बढ़ाता जाऊँगा, तो कषाय का अभाव हो जायेगा, ऐसा अज्ञानी मानता है। और ज्ञान में जो परलक्षी उघाड़ है, ओ ही बढ़ताबढ़ता केवलज्ञान हो जायेगा, ऐसा मानता है।।५८५।।। (श्री द्रव्यदृष्टि प्रकाश, भाग ३, पृष्ठ १०९, बोल ५६५) २६५ *इन्द्रियज्ञान केवलज्ञान में बाधक है* Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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