Book Title: Historical Facts About Jainism
Author(s): Lala Lajpatrai
Publisher: Jain Associations of India Mumbai

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Page 64
________________ 52 वाजस्य नु प्रसव आबभूवेमा च विश्वा भुवनानि सर्वतः स ने मिराजा परियाति विद्वान् प्रजां पुष्टिं वर्द्धमाना अस्मे स्वाहा॥ यजुर्वेदसंहिता अध्याय ९ शृति २५ तत्वनिर्णयप्रासाद पृ ५१५ अर्हन् विभर्पि सायका निधन्व अर्हनिष्कं यजतं विश्वरूपं । बर्हनिदं दयस विश्वमभूवं न वा ओजीयो रुद्र त्वदस्ति ॥ तैत्तिरीयआरण्यक प्र. ४, अनु ५, मंत्र १७ तत्वनिर्णयप्रासाद पृ. ५२४ "कथाकोपीनानरासंगादीनां त्यागिनो यथाजातरूपधर। निर्गथा निष्परिग्रहाः ॥ इति संवर्तश्रुतिः तैत्तिरीय आरण्यक प्र. १० अनु. ६३ सायनाचार्य : तत्वनिर्णयप्रासाद पृ. १२३ निग्रंथ: is proved to mean जैनसाधु, Pleast see तत्वनिर्णय प्रासाद द्वात्रिंशस्तम्भ for other pasi :: in Vedas which are not to be found in the now. .5 able portions of the Vedas. Note specially the folloving which is mentioned to be मूलमंत्र in यज्ञ in विधिकंदली। ॐलाकश्रीप्रतिष्टान् चतुर्विशति तीर्थकरान् ऋषभादि वर्द्धमानांतान् सिद्धांतान शरणं प्रमद्यामहै। ॐ पवित्रमग्निमुपस्पृशामहे येषां जातं सुप्रजातं येषां धीरं सुधीरं यंपां नग्नं मुनग्नं ब्रह्म मुब्रह्मचारिणं उदितेन मनसा अनुदितेन मनसा देवस्य महर्पया महर्षिभिर्जहति याजकस्य यजंतस्य च सा एषा रक्षा भवतु, शांतिर्भवत तुष्टिर्भवतु वृद्धिर्भवतु शक्तिर्भवतु स्वस्तिर्भवतु श्रद्धा भवतु निव्यांजं भवतु । NOTE. No. 4. नन्मिनसंभवात् ॥ II Adhyaya II Pada 33 Sutra. The reference is to fire or Jain logic which says opposite things can be predicated of the same thing from different aspects.

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