Book Title: Historical Facts About Jainism
Author(s): Lala Lajpatrai
Publisher: Jain Associations of India Mumbai

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Page 67
________________ टीका: --- अहंकारत्यागे देहाभिमानममतादयः स्वयमेव शाम्यतीत दर्शयति । नाहमिति । शान्तो निवर: । स्व त्मनीव आत्मौपम्येन सर्वभूतानि पश्यानित्यर्थः । जिनो बुद्धः स यथा आहेसापरस्तद्वत् नियेष्वपि गुणाग्राहा इति न्यायेन जिनेदिाहरणम् । जिन इति वा पाठः ।। कलविंक घटन्यायो धर्म इत्यपि तद्विदाम् । तथात्मसिद्ध म्लेच्छानां तद्देशेषु न दुष्यति ॥ योग वाशिष्ठे निर्वाण प्रकरणे ९७ सर्गे १० श्लोकः । टोका:यथाघटेऽवन्द्धः कलविंकस्तन्मुखायावरेण बहिरुड्डीय गच्छति एवं देहांतः परिच्छिन्नो धर्मोजावः कर्मक्षये परलोके उट्टीय गच्छतीत्याईत कल्पनापि रमत्या ॥ NOTE; No. 8. त्रिप्रभृतिषु शाकटायनस्थ ॥ पाणिनिः शाकटायने नगलाचरणः .-- शाकटायनोपि यपयापनाय यतिग्रामाप्रणीः स्वोपज्ञशद्वानुशासनकृतावाद भगवतः स्तुतिमेवाह । श्री वांग्ममृतं ज्योनिनवादि सर्ववेदसाम ।। अवन्यासत्ता व्याया:सर्ववेदसां सर्वज्ञानानां म्पपरदर्शनसंबंधिमकलशास्त्रानुगत परिज्ञान नामादि प्रभवमुत्पनि कारणमिति ।। This priotic tihat, शाकटायन :und न्यासकार infort) पाणिनि were Jirins. Please also see the following references to __ शाकटायन by पाणिनि ।। "लङःशाकटायनस्यैत्र' (पाणिनिप्रणीताप्राध्यायो तृतीयाध्याय चतुर्थपादे) . "व्योलघुप्रयत्नतरः शाकटायनग्य" (, अष्टमाध्याय तृतीयपारे) For contrary opinion please see Prof. K. B. Pathak's article in the Indian Antiquary Vol. 4:3 Pp, 205-12.

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