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इसके पश्चात् अजितनाथसं लेकर महावीर तक तेईस तीर्थकर अपने अपने समयमें अज्ञानी जीवोंका मोह अन्धकार नाश करते रहे."
नेपालचंद्रराय अधिष्ठाता ब्रह्मचर्याश्रम शांतिनिकेतन बोलपुखाला कह छे क-"मुझको जैन तीर्थकरीकी शिक्षापर । अतिशय भक्ति है" इत्यादि--...
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एम. ए. पांडे थियोसोफिकल सोसायटी बनारस लखे छ के-." मुझे जैनसिद्धांतका बहुत शौख है, क्योंकि कर्मसिद्धांतका इसमें सूक्ष्मतास वर्णन किया गया है"
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अम्बजाक्ष सरकार एम. ए. बी. एल. लिखित "जैनदर्शन जैनधर्म" जनहितैषी भाग १२ अंक ९-१० मां छपावेल छे तेमा लख्यु छ के
१ “यह अच्छी तरह प्रमाणिक हो चुका है कि जैनधर्म बौद्धधर्मकी
शाखा नहीं है. उन्होंने केवल प्राचीन धर्मका प्रचार किया है.
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जैनदर्शनमें जीवतत्त्वकी जैसी विस्तृत आलोचना ह वसी और
किसीभी दर्शनमें नहीं है इत्यादि.''
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रा. रा. वासुदेव गोविन्द आपटे वी. ए. इन्दोर निवासी एक वखतना व्याख्यामां लखे छे के