Book Title: Historical Facts About Jainism
Author(s): Lala Lajpatrai
Publisher: Jain Associations of India Mumbai

Previous | Next

Page 140
________________ 128 टर. हम परह प्रवृत्ति और निवृति दोनोंको लक्षमें रखने वाली मनुष्य ही सर्वथा जैन आचारका पालनकर सक्ता है. धार्मिक आज्ञाओंकों व्यवहारमें भी ओतप्रोत होनेसे जैन मनुष्य जीवनके साधारण संग्रामोंमें नैतिक बल युक्त होनेसे सुदृढ और न्यायी होते है. प्राणी मात्रकी रक्षा फरमाने वाला जैनाचार वीर हृदय वालेही पालसक्ते हैं. निर्बल मनुष्य किसी तरह भी नहीं ! नैतिक और सामाजिक दृष्टिलेभी जैनाचार सर्वोत्तम है एसा पश्चात्यानीति और समाजशास्त्र वेत्ता ओंकाभी मत है, -पशुपक्षी और मनुष्य सबके साथ जैन जनता समष्टि रूपसे वर्तावक सरीस्वा दयाई और न्याय पूर्ण है। भारत वर्षमें वरंवार पडते दुष्कालोंमें जैनोंने अपनी उदारता से इसबातकी बिलकुल निर्घात करदिया है. श्वेतांबर और दिगंबर नामक जैनोंके दो संप्रदाय श्वेतांवर अनेक साधुओंके श्वेतवस्त्र पहननेसे या नग्न दिगबर रहनेसे उपलक्षित हुये है. बौद्धधर्म माननेवाली जातियां आजभी राज्य कर रही हैं जापान इसका ज्वलंत उदाहरण हैं जैनधर्मानु जैनधर्मका यायिओंका सार्वभौम राज्याधिकार इतिहास प्रभाव कालमें चंद्रगुप्त के समय में ही था. भारत वर्षके इतिहासकी आलोचना सर्व देशी वा बहुदेशीय राज्यकरनेवाली वा सत्ता रखने वाली जातिओं के लोक सामान्यपर पडते प्रभावसे हो सक्ती है. तथापि कुछ स्थानों में जिनराज्यों के जैनी राजा हुए उन राज्यों में हमेशा सुखशांति व समृद्धि रहि है। गुजरातका इतिहास यह बतलाता है कि जैनधर्मानुयायि व्यक्तियां जिनराज्योंमें जबतक अधिकाधिक सिंहासनारूढ रही तबतक उन राज्योंकी उन्नति ही होती रही।

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145