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मि० कन्नुलाल जोधपुरी माह दिसंबर सन् १९०६ अने जान्युवारी सन् १९०', The 'Theosophist (धी थिओसोफिस्ट) पत्रना अंकमा लखे छे के :-- “ जैनधर्म " एक ऐसा प्राचीन धर्म है कि जिसकी उत्पत्ति तथा इतिहासका पत्ता लगाना एक बहुतही दुर्लभ बात है । इत्यादि.
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श्रीयुत वरदाकांत मुख्योपाध्याय एम० ए० बंगाल ।.
श्रीयुत नथुराम प्रेमीद्वारा अनुवादित हिंदी लेखथी
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'जैनधर्म हिंदुधर्मसे सर्वथा स्वतंत्र है उसकी शाख या रूपांतर नहीं है.
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९ पार्श्वनाथजी जैनधर्मक आदि प्रचारक नहीं था, परंतु इसका प्रथम प्रचार ऋषभदेवजीने किया था. इसकी पुष्टिके प्रमाणोंका अभाव नहीं है.
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३ बौद्धलोग महावीरजीको निग्रंथोका (जैनियांका) नायक मात्र कहते हैं स्थापक नहीं कहते है." इत्यादि.
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श्रीयुत तुकारामकृष्ण शर्मा लड्डु बी. ए. पी. एच. डी. एम. आर. ए. एस. एम. ए. एस. बो. एम. जी. ओ. एस. प्रोफेसर - संस्कृत शिलालेखादिकना विषयना अध्यापक विन्स कॉलिज बनारस काशीना दशमवार्षिकोत्सव उपर आपला व्याख्यानमांथी – “ सबसे पहले इस भारतवर्ष में ऋषभदेव नामके महर्षि उत्पन्न हुए, वे दयावान्, भद्रपरिणामी, पहिले तिर्थकर हुए. जिन्होंने मिथ्यात्व अवस्थाको देखकर~~सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, और सम्यग् चारित्ररुपी मोक्षशास्त्रका उपदेश किया. बस यहही जिनदर्शन इस कल्पमें हुआ.