Book Title: Hindi Natakkar
Author(s): Jaynath
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 10
________________ आलोक समाज, जाति या राष्ट्र-रक्षा की भावना को भी बहुत-से समीक्षकों ने नाटक को जन्म देने वाली प्रवृत्तियों में माना है। पर राष्ट्र-रक्षा की भावना बहुत बाद में विकसित हुई। नाटक का जन्म सामाजिकता या राष्ट्रीयता के विकास से पहले ही हो चुका था, अपने आदि और अविकसित रूप में । साथ में आदि नाटकों में ऐसी कुछ भावना का विशेष परिचय नहीं मिलता । हाँ, समाज या जाति-रक्षा की भावना ने नाटक के विकास-विस्तार में अवश्य योग दिया। नाटक की जननी के रूप में इसे नहीं माना जा सकता। ऊपर की तीनों प्रवृत्तियों की तृप्ति में इतिहास, पुराण, राष्ट्र, समाज, जाति आदि की रक्षा स्वतः हो ही जायगी। सामाजिक रूप में नृत्य सब कलाओं से पहले प्रारम्भ हुआ। प्रारम्भिक रूप में नृत्य एक उछल-कूद ही रहा होगा। जंगली पशुओं की खाल ओढ़कर, सिर में सींग लगाकर बालों में विभिन्न प्रकार के पंख खोंसकर शरीर को रङ्गबिरंगा बनाकर पास-पड़ोस के लोग एकत्र होजाया करते और आग के चारों ओर चक्राकार घूमकर उछल-कूदकर आनन्द मना लिया करते होंगे। कुल्लू , कॉंगहा, तिब्बत, भूटान आदि के सुदूर पर्वतीय कोनों में अब भी ये नाच देखने को मिलते हैं। धीरे-धीरे मनुष्य सभ्य बनता गया। इन उत्सवों का रूप भी बदलता गया । पशुओं के स्थान पर पूर्वजों का रूप धारण करके, उनके जीवन की घटनाओं को भी इनमें सम्मिलित कर लिया गया । वीर-पूजा के बाद देवपूजा प्रारम्भ हई । देवतायों के जीवन-सम्बन्धी नाच होने लगे। समय के साथ-साथ इन नत्यों में भी विकास होता गया। प्रारम्भिक अवस्था में पशुओं का रूप धारण करके नाच प्रारम्भ हुए। कुछ काल बाद इनमें गीतों का समावेश हुा । वीर-पूजा प्रारम्भ होने पर इनमें गीतों के साथ उनके जीवन की घटनाएं भी सम्मिलित कर ली गई। कुछ काल बाद उनके कल्पित संवाद भी जोड़ लिये गए । नृत्य, गान, घटना के साथ जब भी संवादों का समावेश हुमा, तभी नाटक का जन्म हो गया । जिस प्रकार जंगली नृत्य नाटक के रूप में विकसित हुअा, उसी प्रकार जंगली पशुओं का विकास देवताओं के रूप में हो गया। सभी देशों के अनेक देवता पशु के समान नाटक तब अस्तित्व में पाया, जब समाज का निर्माण हो चुका था। धर्म एक संस्था बन गया था। नाटक का साकार रूप-अभिनय, चरित्र, संवाद, अनुकरण-चोर-पूजा और धर्मोत्सव के कारण ही अस्तित्व में पाया। भयंकर पशु का वध करने, भीषण बाघ से भिड़ जाने, गेंडे का शिकार करने

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