Book Title: Hemchandrashabdanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

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Page 367
________________ सप्तमाध्याये तृतीयः पादः (८६) सं-कटाभ्याम् (८७) प्रति - परोऽनोरव्ययीभावात् - (८८) अन: (८९) नपुंसकाद् वा (९०) गिरि - नदी - पौर्णमास्या ग्रहायण्यपञ्चमवर्ग्याद् वा (२१) संख्याया नदीगोदावरीभ्याम् (९२) शरदादेः (९३) जराया जरस् च (९४) सरजसोपशुना ऽनुगवम् (९५) जात - महद् - वृद्धादुक्ष्णः कर्मधारयात् (९६) स्त्रिया: पुंसो द्वन्द्वाच्च (९७) ऋक्सामर्ग्यजुष-धेन्वनडुह-वाङ्मनसाऽहोरात्र - रात्रिंदिव - नक्तं दिवा - ऽहर्दिवोर्वष्ठीव पदष्ठिवा ऽक्षिभ्रुव दारगवम् (९८) चवर्ग-द-ष-हः समाहारे (९९) द्विगोरन्नह्नोऽट् Jain Education International - (१००) द्वि-त्रेरायुषः (१०१) वाऽञ्जलेरलुकः (१०२) खार्या वा (१०३) वाऽर्धाच (१०४) नाव: (१०५) गोस्तत्पुरुषात् (१०६) राजन् - सखे : (१०७) राष्ट्राख्याद् ब्रह्मणः (१०८) कु महद्भयां वा (१०९) ग्राम-कौटात् तक्ष्णः (११०) गोष्ठा - sतेः शुनः ( १११ ) प्राणिन उपमानात् (११२) अप्राणिनि (११३) पूर्वोत्तर - मृगाच्च सक्थ्नः ( ११४) उरसोऽग्रे - ( ११५) सरो - sनो ऽश्माsयसो जाति - नाम्नोः (११६) अह्नः ( ११७) संख्यातादह्नश्च वा ( ११८) सर्वांश संख्या - ऽव्ययात् (११९) संख्यातैक - पुण्यवर्षा-दीर्घाच्च रात्रेरत् For Private & Personal Use Only ९५ www.jainelibrary.org

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