Book Title: Hemchandrashabdanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

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Page 403
________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकारायनुक्रमः । १३१ द्विगोरनपत्ये- द्विः | ६|१|२४|| द्विगोरनह्नोऽट् |७|३|९९|| द्विगोरीनः | ६ |४ | १४०॥ द्विगोरीनेकौ वा | ६ |४|१६४|| |४|१|४२|| दोरेव प्राचः | ६ | ३ |४०|| दोसोमास्थ इ: | ४|४|११ ॥ द्यावापृथिवी - यौ |६|२| १०८ || तेरि: |४|१|४१ || द्युद्भ्योऽद्यतन्याम् |३|३|४४|| द्रोर्मः | ७|२|३७|| प्रागपागु-य: |६|३|८|| द्युप्रावृट्वर्षा-तूं | ३|२|२७|| मक्रमो यङः | ५|२|४६|| द्रव्यवस्नात्केकम् |६|४|१६७|| ञ वा | ६ | १ | १३९|| द्रेरञणोऽप्राच्यः | ६|१|१२३|| द्रोणाद्वा | ६ | १|५९|| द्रव्ये | ७|१|११५|| द्रोर्वयः |६|२|४३|| द्रयादेस्तथा |६|१|१३२|| द्वन्द्वं वा | ७|४|८२|| द्वन्द्वात् प्राय: |६| ३ |२०१ || द्वन्द्वादीयः |६|२|७|| द्वन्द्वाल्लित् |७|१|७४|| द्वन्द्वे वा | १|४|११ ॥ द्वयोर्विभज्ये च तरप् |७|३|६|| द्वारादेः | ७|४|६|| द्विः कान - सः | १|३|११|| द्विगोः संशये च | ७ | १|१४४|| द्विगो: : समाहारात् |२|४|२२|| Jain Education International द्वितीयतुर्य द्वितीया | ५|४|७८|| द्वितीया खट्वा क्षेपे | ३|१|५९|| द्वितीयात् स्वरादूर्ध्वम् ।७|३|४१|| द्वितीयायाः काम्यः | ३|४|२३|| द्वितीयाषष्ठयावे० | २|२|११७|| द्वित्रिचतुरः सुच् | ७|२|११०|| द्वित्रिबहो- स्तात् |६|४|१४४|| द्वित्रिभ्यामयड् वा |७|१|१५२|| द्वित्रिस्वरौ-भ्यः | २|३|६७|| द्वित्रेरायुषः ।७|३|१००|| द्विर्धमधौ वा | ७|२|१०७|| - द्वित्रेर्मूर्ध्नो वा |७|३|१२७|| द्वित्र्यष्टानां हौ |३|२|९२|| द्वित्र्यादेर्याण् वा |६|४|१४७|| द्वित्वे गोयुगः | ७|१| १३४|| द्वित्वेऽप्यन्ते वा | २|३|८१|| द्वित्वे व नौ |२| १|२२|| द्वित्वे ह्वः || ४|१|८७|| द्विदण्डचादिः | ७|३|७५ || द्विपदाद् धर्मादन् ।७।३।१४१ || द्विर्धातुः परोक्षाङे - धेः |४|१|१ || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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