Book Title: Hemchandrashabdanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

View full book text
Previous | Next

Page 424
________________ १५२ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकारायनुक्रमः । लघोर्यपि | ४ | ३ |८६ ॥ लघ्वक्षरास-कम् | ३|१|१६० || लङ्गिकम्प्यो- त्योः | ४|२|४७|| लभः |४|४|१०३॥ ललाटवात - कः | ५|१|१२५|| लवणादः | ६|४|६|| लषपतपदः |५|२|४१|| लाक्षारोचनादिकणू |६|२|२|| लिप्स्यसिद्धौ |५|३|१०|| लिम्पविन्दः | ५ | १|६० ॥ लियो नोऽन्तः - वे |४|२|१५|| लि लौ । १।३।६५॥ लिहादिभ्यः || ५ | १|५०|| लीलिनो - पि | ३ | ३| ९० ॥ लीलिनोर्वा |४|२|९|| लुक् । १।३।१३।। लुक्वाजिनान्तात् |७|३|३९|| लुक्युत्तरपदस्य कप्न् |७|३|३८|| लुगस्यादेत्यपदे | २|१|११३।। लुगातोsनापः |२| १|१०७॥ लुप्यय्वृल्लेत् | ७|४|११२ ॥ लुबञ्चेः |७|२।१२३।। लुब्बहुलं पुष्पमूले | ६|२|५७|| लुब्वाध्यायानुवाके |७|२|७२|| लुभ्यञ्चेर्विमोहार्चे |४|४|१४४|| लूधूसू-त: ।५|२|८७|| Jain Education International लूनवियतात् पशौ |७|३|२१|| लोकंपृणम-त्नम् ।३।२।११३|| लोकज्ञाते - | ७|४|८४|| लोकसर्व-ते |६|४|१५७|| लोकात् । १।१।३।। लोमपिच्छादेः शेलम् |७|२|२८|| लोम्नोऽपत्येषु |६|१|२३॥ लो लः |४|२|१६|| लोहितादिश-त् | २|४|६८|| लोहितान्मणौ | ७|३|१७|| वंशादेर्भा-त्सु |६|४|१६६।। वंश्यज्यायो - वा | ६ | १|३|| वंश्येन पूर्वार्थे |३|१|२९|| वचोऽशब्दनाम्नि | ४|१|११९|| वञ्चस्रंसध्वंस-नी |४|१|५०|| वटकादिन् ।७|१|१९६॥ वतण्डात् ।६।१।४५|| वत्तस्याम् |१|१|३४|| वत्सशालाद्वा |६|३|१११॥ वत्सोक्षाश्व-पित् । ७|३|५१ || वदव्रजलः | ४|३|४८|| वदोऽपात् ।३।३।९७।। वन्याङ्पञ्चमस्य |४|२|६५|| वा | २|३|८३॥ म्यविति वा |४| २|८७|| वय: शक्तिशी | ५|२|२४|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449