Book Title: Hemchandrashabdanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
________________
१६०
श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः ।
शीर्ष : स्वरे तद्धिते | ३|२| १०३ || शीर्षच्छेदाद्यो वा | ६ |४|१८४||
शीलम् ||६|४|५९||
शीलिकामि - णः | ५ | १|७३||
शुक्रादियः |६| २|१०३ || शुङ्गाभ्यां भारद्वाजे |६|१|६३ ||
शुण्डिकारण | ६ | ३ | १५४||
शुनः | ३ |२|९० | शुनीस्तन दूधेः || ५ | ३ | ११९|| शुनो दूत् | ७|१|३३|| शुभ्रादिभ्यः | ६ | १|७३ | शुष्कचूर्ण-व |५|४|६०||
शूर्पाद्वाञ् |६|४|१३७|| शूलात्पाके |७|२|१४२।।
शूलोखाद्यः |६|२|१४१॥ शृङ्खल-भेः | ७|१|१९१ ॥ शृङ्गात् |७|२|१२||
शृकमगम-कणू |५|२|४०|| शृवन्देरारुः |५|२|३५|| शेपपुच्छला-नः | ३|२|३५|| शेवलाद्यादे-यात् ।७।३।४३।।
शेषात्परस्मै | ३|३|१००॥
शेषाद्वा | ७|३ | १७५॥
शेषे | २|२|८१||
शेषे | ६|३|१||
शेषे भविष्यन्त्ययौ |५|४|२०||
Jain Education International
शेषे लुक् | २|१८|| शोकापनुद-के |५|१|१४३ || शोभमाने | ६ | ४|१०२|| शो व्रते |४|४|१३|| शौनकादिभ्यो णिन् |५|३|१८६||
शौ वा | ४|२|९५||
अश्वातः | ४|२|९६ ||
श्नास्त्योर्लुक् |४|२|९०।। यः शी द्रवमूर्ति - र्शे |४|१|९७||
श्यशवः | २|१|११६॥ श्यामलक्षणा-ष्टे | ६| १ |७४ || श्यावारोकाद्वा | ७|३|१५३।। श्येतैतहरित - नश्व | २|४|३६|| इयैनंपाता - ता | ६ |२| ११५ ||
श्रः शृतं हविः क्षीरे | ४|१|१०० || श्रन्थग्रन्थो नलुक् च |४|१|२७|| पेः प्रयोक्ये |४|१|१०१|| श्रवणाश्वत्थान्नाम्न्यः |६|२|८|| श्रविष्ठाषाढादीयण् | ६ |३|१०५|| श्राणामांसौ वा | ६|४|७१ || श्राद्धमद्य-नौ |७|१|१३९ || श्रितादिभिः | ३|१|६२||
-
श्रुमच्छमी - यञ् | ७|३|६८ || श्रुवोऽनाङ्प्रतेः | ३ | ३ |७१॥
श्रुसदवस्भ्यः- वा |५|२|१|| श्रुस्रुद्रु- र्वा | ४|१|६१ |
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449