Book Title: Hemchandrashabdanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

View full book text
Previous | Next

Page 422
________________ १५० श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः । यावादिभ्यः कः | ७|३|१५|| यिः सन्वेर्ण्यः | २|१|११॥ यि लुक् |४|२|१०२|| युजञ्चक्रुञ्चो नो ङः | २|१|७१ || युजभुजभज-नः ।५|२|५०|| युजादेर्नवा | ३ | ४|१८|| समासे |१| ४|७१ ॥ दुद्रो: |५|३|५९|| पूद्रोर्घञ् । ५/३/५४ || युवणवृदृवश - हः | ५|३|२८|| युववृद्धं कुत्सार्चे वा | ६ | १|५|| युवा खलति-नैः | ३|१|११३॥ युवादेरण् |७|१|६७|| युष्मदस्मदोः ||२|१|६| युष्मदस्मदो -देः | ७|३|३०|| यूनस्तिः | २|४|७७|| यूनि लुप् |६|१|१३७|| यूनो के | ७|४|५०|| यूयं वयं जसा | २|१|१३| ये नवा |४|२|६२|| येयौ च लुक् च | ७|१|१६४|| वर्णे ||३|२|१००॥ यैयकञावसमासे वा | ६ | १ | ९७|| योगकर्मभ्यां योकञौ |६|४|१५|| योग्यतावीप्सा - इये | ३|१|४०|| Jain Education International योद्धृप्रयोजनाद्युद्धे |६|२|११३|| योऽनेकस्वरस्य ।२।१|५६।। योपान्त्या-नञ् |७|१|७० ॥ यो शिति | ४ | ३ |८०|| यौधेयादेरञ् |७|३|६५| व्यक्ये | १|२|२५|| य्वः पदान्तात्-दौत् |७|४|५|| य्वृत् सकृत् |४|१|१०२|| य्वृवर्णाल्लघ्वादेः ।७|१|६९॥ वो: प्वय्व्यञ्जने० | ४|४|१२१|| रः कखप-पौ |१|३|५|| र : पदान्ते |१| ३ | ५३ ॥ रक्तानित्यवर्णयोः |७|३|१८|| रक्षदुञ्छतोः |६|४|३० ॥ :: प्राणिनि वा | ६ | ३|१५| रजःफलेमलाद् ग्रहः ।५।११९८|| रथवदे || ३ |२| १३१|| रथात्सादेश्व वो | ६ | ३|१७५।। रदादमूर्च्छम-च ।४।२।६९|| र इटि तु-व | ४|४|१०१ || रभलभशक-मिः |४|१|२१|| रभोऽपरोक्षाशवि | ४|४|१०२॥ रम्यादिम्य:-रि |५।३।१२६।। रषुवर्णानो - रे | २|३|६३ ॥ रहस्यमर्या-गे | ७|४|८३|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449