Book Title: Hemchandrashabdanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
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१३२
श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः ।
द्विषन्तपपरन्तपौ |५|१|१०८|| द्विषो वातृशः | २|२|८४|| द्विस्वरब्रह्म-देः |६|४|१५५|| द्विस्वरादणः |६|१|१५५ ।। द्विस्वरादनद्याः ।६।१।७१ ॥
द्विहेतो वा |२| २|८७|| द्वीपादनुसमुद्रं यः | ६ | ३|६८||
द्वेस्तीयः | ७| १ | १६५ ।। द्व्यन्तरनव-ईप् । ३।२।१०९ || द्वयादेर्गुणान् यट् | ७|१|१५३ ।। द्वयुक्तजक्षपञ्चतः |४|२|९३|| द्वयुक्तोपान्त्यस्य - रे | ४|३|१४|| द्वयेकेषु-र्वा ।६।१।१३४|| द्वयेषसूत-स्य ।२।४।१०९ || धनगणाल्लब्धरि |७|१|९|| धनहिरण्ये कामे |७|१|१७९||
धनादेः पत्युः | ६|१|१४|| धनुर्दण्डत्सरु - हः | ५ | १|९२|| धनुषो धन्वम् | ७|३ | १५८||
धर्मशील-त् |७|२|६५।। धर्माधर्माच्चरति |६|४|४९|| धर्मार्थादिषु द्वन्द्वे | ३|१ | १५९ || धवाद्योगा-त् |२|४|५९||
धागः | ४|४|१५|
धागस्तथोश्च |२| १|७८ ||
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धातोः कण्डूवादेर्यक् | ३|४|८|| धातोः पू-च ।३।१।१।। धातोः सम्बन्धे० | ५|४|४१|| धातोरनेकस्वरादाम्० |३|४|४६ || धातोरवर्णो ये | २|१|५०|| धात्री |५|२|८१|| धान्येभ्य ईनञ् |७|१|७९।। धाय्यापाय्यसा - से |५|१|२५|| धारीङोऽकृच्छ्रे ऽतृश् ।५।२|२५|| धारेर्धर् च |५|१|११३॥ धुटस्तृतीयः | २|१|७६ ।। घुटां प्राक् | १|४|६६ || घुटो धुटि स्वे वा | १ | ३ |४८|| धुड्ह्रस्वा-थो: |४|३|७० ॥ धुरोऽनक्षस्य ||७| ३ | ७७ |৷ धुरो यैयण् |७|१|३|| धूगौदितः ||४|४|३८|| धूग्प्रीगोर्नः ।४|२|१८|| धूसुस्तोः परस्मै | ४|४|८|| धूमादेः |६|३|४६||
धृषसः प्रगल्भे | ४|४|६६॥ धेनोरनञः | ६|२|१५|| धेनोर्भव्यायाम् । ३।२।११८||
न |२|२|१८||
नं क्ये | १|१|२२||
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