Book Title: Hemchandrashabdanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
________________
११८
श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः ।
कोऽइमादेः ||६|४|९७॥ कौण्डिन्याग - च |६|४|९७|| कौपिञ्जलहास्तिप० |६|३|१७१||
कौरव्यमाण्डूकासुरेः | २|४|७० ||
कौशेयम् |६|२|३९||
क्ङिति शिय् | ४|३|१०५ || क्तं नञादिभिन्नैः | ३|१|१०५ ||
क्तक्तवतू |५|१|१७४।। क्तयोः |४|४|४०|| क्तयोरनुपसर्गस्य || ४ | ११९२ || तयोरसदाधारे |२| २|९१ ||
क्ताः |३|१|१५१ ॥
ताच नाम्नि वा | २|४|२८|| तात्तमबादे-न्ते |७|३|५६||
तादल्पे | २|४|४५|| तादेशोऽषि | २|१|६१|| टो गुरोर्व्यञ्जनात् ||५|३|१०६ ||
क्तेन | ३|१|९२|| क्तेनासत्त्वे | ३|१|७४||
क्sनिश्चजो: - ति |४|१|१११ ||
क्त्वा |४| ३|२९॥
क्त्वातुमम् | १|१|३५|| क्त्वातुमम् भावे |५|१|१३|| क्नः पलितासितात् | २|४|३७||
क्यः शिति | ३ | ४ | ७०|| क्यङ् |३|४|२६||
Jain Education International
क्यमानिपित्-ते | ३ |२|५०|| क्यङ्क्षो नवा | ३|३|४३|
क्यान | ४ | ३ | ११२ ।।
क्य - यङाशीर्ये | ४|३|१०||
क्यो वा | ४ | ३ |८१||
क्रमः |४|४|५४॥
क्रमः क्त्वि वा | ४|१|१०६ || क्रमो दीर्घः परस्मै | ४|२|१०९ || क्रमोऽनुपसर्गात् || ३ | ३ | ४७|| क्रय्यः क्रयार्थे |४| ३|९१ ॥ क्रव्यात् क्रव्यादौ |५|१|१५१ ।। क्रियातिपत्तिः - महि | ३ | ३ | १६ || क्रियामध्येऽध्व-च | २|२|११०॥ क्रियायां क्रियार्था० |५|३|१३|| क्रियार्थी धातुः | ३|३|३|| क्रियाविशेषणात् | २|२|४१ || क्रियाव्यतिहार्थे | ३|३|२३|| क्रियाश्रयस्या-णम् ।२|२|३०|| क्रियाहेतुः कारकम् | २|२|१|| क्रीडोऽकूजने | ३ | ३|३३|| क्रीतात् करणादेः | २|४|४४|| क्रुत्संपदादिभ्यः क्विप् | ५|३|११४|| क्रुद्गुहे-पः |२||२७||
क्रुशस्तुन:- सि । १|४|९१॥ क्रोशयोजन - मा |६|४|८६||
क्रोष्टृशलङ्कोर्लुक् च | ६ | १|५६ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449