Book Title: Hemchandrashabdanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

Previous | Next

Page 398
________________ १२६ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः । णौ सन्ङे वा | ४|४|२७|| प्योऽतिथेः | ७|१|२४|| तं पचति द्रोणाद्वाञ् |६|४|१६१|| तं प्रत्यनो-लात् |६|४|२८|| तं भाविभूते | ६ |४| १०६॥ तः सौ सः | २|१|४२|| तक्षः स्वार्थे वा | ३ | ४|७७|| ततः शिटः | १ | ३ | ३६ || तत आगते ।६।३।१४९॥ ततोऽस्याः | १|३|३४|| ततो ह-र्थः | १|३|३|| तत्पुरुषे कृति | ३|२|२०|| तत्र | ७|१|५३ || तत्र कृत- लब्ध-ते |६| ३|९४|| तत्र कसुकानौ-त् |५|२|२|| तत्र घटते - ष्ठः | ७|१ | १३७|| तत्र नियुक्ते | ६ |४| ७४|| तत्र साधौ | ७|१|१५|| तत्रादाय मि वः | ३|१|२६|| तत्राधीने |७|२| १३२|| तत्राहोरात्रांशम् ।३।१।९३ || तत्रोद्धृते पात्रेभ्यः | ६।२।१३८।। - तत्साप्यानाप्या-श्व | ३|३|२१|| तद् |७|१|५०॥ तदः से: - र्था | १| ३ | ४५|| तदन्तं पदम् |१|१|२०|| Jain Education International तदत्रास्ति |६|२|७०।। तदत्रास्मै वा-यम् |६|४|१५८|| तदर्थार्थेन |३|१|७२|| तदस्य पण्यम् |६|४|५४ || तदस्य सं-तः | ७|१|१३८|| तदस्यास्त्य -तुः | ७|२|१|| तद्धितः स्वर - रे | ३|२|५५|| तद्धितयस्वरेऽनाति |२|४|९२|| तद्धिताकको - ख्याः | ३|२|५४|| तद्धितोऽणादिः |६|१|१॥ तद्भद्रायुष्य - षि |२| २|६६|| तद्यात्येभ्यः |६|४|८७|| तद्वति | ७|२| १०८|| तद्वेत्त्यधीते |६|२|११७|| तद्युक्तौ | २|२| १००|| तनः क्ये |४|२|६३॥ तनुपुत्राणु क्ते |७|३|२३|| तनो वा | ४|१|१०५ ॥ तन्त्रादचि-ते |७|१|१८३ ।। तन्भ्यो वा श्व | ४|३|६८|| तन्व्यधीणू-तः | ५ | १|६४|| तपः कर्त्रनुतापे च | ३ | ४|९१ || तपसः क्यन् | ३|४|३६|| तपेस्तप:कर्मकात् ।३।४|८५|| तप्तान्ववाद्रहसः | ७|३|८१|| तमर्हति |६|४|१७७|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449