Book Title: Hemchandrashabdanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

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Page 372
________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासने (७५) आधिक्या-ऽऽनुपूर्ये (७६) डतर-डतमौ समानां स्त्रीभावप्रश्ने (७७) पूर्व-प्रथमावन्यतोऽतिशये (७८) प्रोपोत्-सम् पादपूरणे (७९) सामीप्येऽधोऽध्युपरि (८०) वीप्सायाम् (८१) प्लुप् चादावेकस्य स्यादेः (८२) द्वन्द्वं वा (८३) रहस्य-मर्यादोक्ति- ___व्युत्क्रान्ति-यज्ञपात्रप्रयोगे (८४) लोकज्ञातेऽत्यन्तसाहचर्ये (८५) आबाधे (८६) नवा गुण: सदृशे रित् (८७) प्रिय-सुखं चाकृच्छ्रे (८८) वाक्यस्य परिर्वर्जने (८९) सम्मत्यसूया-कोप कुत्सनेष्वाद्यामन्त्र्यमादौ स्वरेष्वन्त्यश्च प्लुत: (९०) भर्त्सने पर्यायेण (९१) त्यादेः साकाङ्क्षस्याङ्गेन (९२) क्षिया-ऽऽशी:-प्रेषे (९३) चितीवार्थे (९४) प्रतिश्रवण-निगृह्यानुयोगे (९५) विचारे पूर्वस्य (९६) ओम: प्रारम्भे (९७) हे: प्रश्नाख्याने (९८) प्रश्ने च प्रतिपदम् (९९) दूरादामन्त्रयस्य गुरुर्वै कोऽनन्त्योऽपि लनृत् (१००) हे-हैष्वेषामेव (१०१) अस्त्री-शूद्रे प्रत्यभिवादे भो-गोत्र-नाम्नो वा (१०२) प्रश्ना-ऽर्चा-विचारे च सन्धेयसन्ध्यक्षरस्या ऽऽदिदुत्परः (१०३) तयोय्वौ स्वरे संहितायाम् (१०४) पञ्चम्या निर्दिष्टे परस्य (१०५) सप्तम्या पूर्वस्य (१०६) षष्ठयाऽन्त्यस्य (१०७) अनेकवर्णः सर्वस्य (१०८) प्रत्ययस्य (१०९) स्थानीवाऽवर्णविधौ (११०) स्वरस्य परे प्राग्विधौ (१११) न सन्धि-डी-य-क्वि द्वि-दीर्घा-ऽसद्विधा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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