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હસ્તપ્રતવિદ્યા અને આગમસાહિત્ય : સંશોધન અને સંપાદન
'अधा' जैसा प्राचीन पाठ कागज़ की एक दो प्रतों में भी मिलता है। ऐसे स्थलों पर 'अधा' पाठ (अथवा 'जधा' भी) नहीं अपनाकर 'जहा' (परवर्ती रूप ) पाठ अपनाया ( आचारांग में) गया है । यही बात 'एकदा ' पाठ के लिए भी लागू होती है (इसके पाठान्तर हैं 'एगदा, एगता, एगया' ) ।
२. एक ही पद्य, वाक्य, सूत्र या परिच्छेद में विभिन्न स्तरके पाठ
आचारांग भगिणी, भइणी, २. ३६०, सदा, सता, १.३३, पादाणि, पायाणि,
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पायाई २.५९२, ५९३
सूत्रकृतांग
निग्गंथे, णिग्गंथे ; नवनीतं, णवणीयं २.१.६५०,
उत्तराध्यायन
खेत्ताणि, खेलाई १२.१३, अन्नमन, अण्णमण्ण १३.५
अर्धमागधी आगम ग्रंथों की हस्तप्रतों में मिल रहे विभिन्न पाठान्तरों में से शब्दों एवं शब्द-रूपों का चुनाव प्राचीनता के आधार पर निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
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५.
विविध रूप
१. अत्ता, आता, आदा, आया, अप्पा
२. नरक, नरग, णरक, णरग, णरय, ३. नगर, नयर, णगर, णयर, णकर
४. लोकावादी, लोगावादी, लोकावाई, लोगावाई,
लोयावादी, लोयावाई
मेधावी, महावी
६.
अबोधीए, अबोह
७. अहिताए, अहियाए, अहिआए
८. पडिसंवेदयति, पडिसवेदेति, पडिसंवेएइ,
पडसंवेतइ
९.
भवति, भवइ, हवति, हवइ, होति, होइ १०. दक्खिणातो, दक्खिणाओ, दाहिणाओ
११. ओववादिए, ओववातिए, उववादिते, उववादिए
ओवत्राइए, उववाइते, उववाइए ( दो पृथक्
पृथक् शब्द)
१२. एकदा, एगदा, एगता, एगया
१३. सदा, सता, सया
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णिरय
प्राचीनतम रूप
अत्ता या आता
नरक
नगर
लोकावादी
मेधावी
अबोधीए
अहिताए
पडसंवेदयति
भवति
दक्खिणातो
ओववादिए
ओववातिए
एकदा
सदा
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