Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 5
________________ प्रस्तावना. मान हता, एम सनवे . ते श्री वर्धमानमूरिश्वरजी महाराजना शिष्य हता; अने श्री अभयदेवमूरि, जिनचंद्रसूरि, तथा जिनभद्रसूरिजीना गुरु हता. ते संसारीपणामां सोम नामना ब्राह्मणना पुत्र हता, तथा तेमनुं नाम शिवेश्वर हतुं; तथा मालवाना रहेवासी हता. ते गुजरातना राजा दुर्लभसेनना समयमां चैत्यवासी साथे धर्मवाद करवाने पोताना नाश् वुद्धिसागरनी साथे गुजरातमां अव्या हता; तथा त्यां दुर्लभसेनराजानी सनामां, सरस्वतीलांडागारमाथी मगावलीदशवैकालिकनी टीकामांश्री साध्वाचारप्रकरण वांचीने तेमणे चैत्यवासीउँने हराव्या हता; अने एवी रीते सनाने जीतवाथी,राजाए तेमने "खरतर" नामर्नु बिरुद आप्युं हतुं. तेमणे आ अष्टकनी टीका विक्रम संवत १000 मां जावालपुर नामना गाममां बनावी . वली तेमणे पंचलिंगीप्रकरण, वीरचरित्र, तथा संवत १०ए। मां आसापलीमा रहीने लीलावती कथा, तथा डीडी यानकमां रहीने कथानककोश विगेरे ग्रंथो बनाव्या . श्री अभयदेवसूरिजीमहाराज. आ ग्रंथनी टीकाना शोधनार श्री अभयदेवमूरिमहाराज पण विक्रम संवत एक हजारना सैकामां विद्यमान हता, तेम कहेबुं निर्विवादज . तमेनो जन्म धारा नगरीना व्यापारी धननी स्त्री धनदेवीनी कुदिए थयो हतो, तथा संसारीपणामां तेमर्नु अभयकुमार नाम हतुं. ते श्री जिनेश्वरसूरिजी महाराजना शिष्य हता. तेमने विक्रम संवत १०७७ मां सोल वर्षनी वयेज आचार्यपदवी मली हती. अने तेथी तेमनो जन्म विक्रम संवत १०७२ मां होवानुं साबित थाय. वली विचारामृत नामना ग्रंथमां कहेलुं ने के, तेमणे विक्रम संवत ११२४ मां धोलकामां रहीने श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराजना बनावेला पं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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