Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 3
________________ प्रस्तावना. सर्वे जैनबंधुने मालुम थाय जे या "अष्टक" नामनो ग्रंथ जैन धर्मना अति उत्तम ग्रंथ मांहेलो एक ग्रंथ बे. या ग्रंथनी टीका पति विस्तारवाली तथा न्यायना विषयथी जरपूर बे. मूल ग्रंथना कर्ता महान आचार्य श्री हरीभद्रसूरिजी महाराज बे. तेमणे आ ग्रंथमां बत्रीश बाबतोपर तेना बीस जागो पाडीने अति उत्तम विवेचन कर्तुं बे. तथा ते दरेक बाबतोनाव व लोको रचीने या ग्रंथना बत्रीस अष्टको बनावेलां बे. ते बत्री से अष्टकोमां शं शं विषय वर्णव्यो बे? ते श्र ग्रंनुक्रमणिका तथा या ग्रंथ संपूर्ण वांचवाथी जणाशे. हालना समयमां जैनधर्म संबंधी जे जे पुस्तको उपाइ बहार पडेलां बे, तेथी पण या ग्रंथ प्रति उत्तम तथा जैनधर्मनुं रहस्य जाण - वानी इवावालाने घणोज उपयोगी बे. अने ते विषेनुं त्रे वधारे वर्णन नहीं करतां या ग्रंथ आद्यथी ते अंतसुधि वांची जवानीजो सर्वने लामण करीए बीए. श्र पुस्तकमां तेना मूलश्लोको, तेनो अर्थ तथा टीकानो जावार्थ पण विस्तार श्री दाखल करेलो बे. या ग्रंथ मूल संस्कृत भाषामां होवाथी, हालना समयमां तेाषानुं सर्वने जाणपणुं नहीं होवाथी मोए तेनुं गुजराती भाषांतर जामनगर निवासि पंडित श्रावक हीरालाल वि. हंसराज पासे करावी बपावी प्रसिद्ध कर्यु बे. या मूल ग्रंथना कर्ता श्री महान आचार्य हरिभद्रसूरीजा बे, तथा तेनी अति उत्तम ने न्यायगर्जित टीका श्री जिनेश्वरसूरिजी महाराजे बनावेली बे; छाने ते टीकाने श्री अभयदेवसूरीश्वरजीए शोधेली . अने तेटलामाटे ते ऋणे आचार्योनो जे टुंक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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