Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 4
________________ प्रस्तावना. इतिहास अमोने मलेलो, ते वाचक वर्गने विदित श्रवा माटे अत्रे प्रसंग होवाथी नीचे लखीए जीए. श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज. आमूल ग्रंथना कर्ता श्री हरिभद्रसूरिजी महाजनो जन्म विक्रम संवतना पांचमा सैकामां संनवे बे. तेमणे सर्व मली चौदसोने चम्मालीस ग्रंथो बनान्या कहेवाय जे. ते प्रथम ज्ञाते ब्राह्मण हता; अने महा विधान हता. मेवटे वेदादिकमां कहली हिंसादिक जोश्ने, ते धर्म तजीने तेमणे श्री जैनधर्मनी दीदा लीधी. तेमणे बनावेला ग्रंथोमां अनेकांतजयपताका ( टीकाश्री मुनिचंसूरि), शिष्यहिता नामनी आवश्यक सूत्रनी टीका, उपदेशपद, सिझर्षि माटे बनावेली चैत्यवंदनवृत्ति (ललित विस्तरा), जंबुद्धीप संग्रहणी (टीका-श्री प्रजानंदसूरि), ज्ञानपंचकविवरण, दर्शनसप्ततिका, दशवकालिकनियुक्तिटीका, दशवैकालिकबृहवृत्ति, दीदाविधिपंचासक, धर्मबिंड, ज्ञानचित्रिका, पंचासकवृत्ति, मुनिपतिचरित्र, लग्नकुंडलिका, वेदबाह्यतानिराकरण, श्रावकधर्मविधिपंचासक, समरादित्यचरित्र, योगबिंप्रकरणवृत्ति, पंचसूत्रवृत्ति, व्यवहारकरूप, योगदृष्टिसमुच्चय, षोडशक, तथा अष्टकजी विगेरे हाल दृष्टिए पडता मुख्य ग्रंथो .एवी रीते तेमणे बनावेला महान ग्रंथोज तेमनुं अपूर्व ज्ञान जणावी आपे . तेमना बनावेला दरेक ग्रंथोने बेडे "विरह" शब्द आवे. अने ते विरहांकथी श्री हरिभद्रसूरिजीनी कृतिनी साबिती थायचे. गडोत्पत्तिप्रकरणमा विक्रम संवत पांचसो पांत्रिसमां (५३५) तेमनुं देवलोक गमन कहेलुं . श्री जिनेश्वरसूरिजी महाराज. श्रा "अष्टकजी" नामना ग्रंथनी टीका करनारा श्री जिनेश्वरसूरिजी महाराज विक्रम संवत एक हजारना सैकामां विद्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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