Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth Author(s): Shobhachad Bharilla Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar View full book textPage 5
________________ निवेदन सन्तों के संकीर्तन, स्तवन, गुणगान, उनकी आराधना एवं उपासना से जीवन का मैल गलता-धुलता है. जीवन में उदात्त एवं दिव्यभाव का आविर्भाव होता है. राजस और तामस भाव सन्तों के सान्निध्य में ही नहीं रह पाता. इस तथ्य की अनुभूति उन्हें अवश्य हुई होगी जिन्होंने दिवंगत स्वामी श्रीहजारीमलजी म. के सत्संग में अपने जीवन के कतिपय क्षण विताये होंगे. मैंने तो उनके सान्निध्य में एक अपूर्व चेतना का साक्षात्कार किया है. ऐसे महान् सन्त की स्मृति को चिरस्थायी बनाना जगत् के कल्याण में एक प्रकार से योग देना है. ग्रन्थप्रकाशन समिति ने व्यवस्थापक का जो उत्तरदायित्व मुझे सौंपा, उसका निर्वाह तो मैं पूरी तरह नहीं कर सका, मगर उसकी पूत्ति मेरे सहयोगियों द्वारा हो गई है. मैं उनका आभारी हूँ. प्रस्तुत ग्रंथ को इस रूप में उपस्थित करने में जिन-जिन महानुभावों ने प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग दिया है, वे सब साधुवाद के पात्र हैं. ग्रंथ के मुद्रणसौंदर्य का श्रेय उद्योगशाला प्रेस देहली के व्यवस्थापक श्रीशान्तिलाल व० शेठ को है जिन्होंने ग्रंथमुद्रण में आत्मीयभाव से गहरी दिलचस्पी ली है. प्रेस के अन्य कर्मचारी वर्ग का सौजन्य भी सराहनीय रहा है. विशेषतः अर्थसहायकों, समिति के सदस्यों और कोषाध्यक्ष श्रीखूबचंदजी गादिया आदि को अनेकानेक धन्यवाद हैं जिनके सप्रेम सहयोग से यह सफलता प्राप्त हो सकी है. ग्रंथ के प्रधान सम्पादक पण्डित शोभाचन्द्रजी भारिल्ल और शिल्पसम्पादक कुमार सत्यदर्शी ने ग्रंथ के लिए जो श्रम किया है, वह भुलाया नहीं जा सकता. इनके अतिरिक्त कुन्दन जैन सिद्धान्तशाला ब्यावर के अध्यक्ष सेठ नौरतननलजी कोठारी ने समय-समय पर पं० शोभाचन्द्रजी को दिल्ली जाने के लिए अवकाश देकर प्रशंसनीय सहयोग दिया है, सेठ श्री पुखराजजी शीशोदिथा तथा श्रीअमरचंदजी मोदी, श्रीरतनचन्दजी मोदी आदि ने भी गहरी दिलचस्पी ली है, उसके लिए भी हम आभारी हैं. सेठ पन्नालालजी पूनमचंदजी कांकरिया (ब्यावर) ने कांकरिया ट्रस्ट की ओर से उत्कृष्ट निबंध पर ५००) रु० का पुरस्कार देने की उदारता प्रदर्शित की है. यह पुरस्कार धर्म और दर्शन विषयक विद्वानों द्वारा निर्णीत निबंध पर दिया जाना है. इस उदारता के लिए कांकरियाजी साधुवाद के पात्र हैं, अन्तिम भाग बड़ी शीघ्रता में मुद्रित हुआ है, अतः कतिपय त्रुटियाँ रह जाना असंभव नहीं. इस विवशता के लिए क्षमाप्रार्थना ! चिम्मनसिंह लोढ़ा, व्यवस्थापक. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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