Book Title: Gommatsara Jivkand Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur View full book textPage 2
________________ सम्पादकीय ग्रन्थनाम : 'गोम्मटसार संस्कृत टीका की उत्थानिका के अनुसार इस ग्रन्थ की रचना चामुण्डराय के प्रश्न के फलस्वरूप हुई है । चामुण्डराय अजितसेनाचार्य के शिष्य थे । इन्होंने नेमिचन्द्राचार्य का भी शिष्यपना ग्रहण किया था | चामुण्डराय की प्रेरणा से नेमिचन्द्राचार्य ने गोम्मटसार की रचना की । 'गोम्मट' चामुण्डराय का घर का नाम था जो मराठी तथा कन्नड़ भाषा में उत्तम, सुन्दर, आकर्षक एवं प्रसन्न करने वाला जैसे अर्थों में व्यवहृत होता है । 'राय' उनकी उपाधि थी, गोम्मट नाम के कारण ही चामुण्डराय द्वारा बनवायी गयी बाहुबली की मूर्ति गोम्मटेश्वर या 'गोम्मटदेव' नाम से प्रसिद्ध हुई। इसी नाम की प्रधानता को लेकर ग्रन्थ का नाम भी गोम्मटसार रखा गया जिसका अर्थ है गोम्मट (चामुण्ड ) के लिए निकाला गया धवलादि ग्रन्थ का सार । इसी प्रणय को लेकर ग्रन्थ का नाम 'गोम्मटसंग्रहसूत्र' भी दिया गया है। गोम्मटसंग सुत्तं गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिरो य । गोम्मटरायविणिम्मिय दक्खिण- कुक्कुडजिणो जयउ ।।६६६ ।। कर्मकाण्ड - यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि ग्रन्थ के दोनों भागों के नाम जीकाण्ड और कर्मकाण्ड भी टीकाकारों द्वारा दिये गये हैं । (गोम्मटसारनामधेय पंचसंग्रहं शास्त्रं प्रारभमाणः मन्दप्र. टी. पू. ३ | तद्गोम्मटसारप्रथमावयवभूतं जीवकाण्डं विरचयन् मन्दप्रबोधिका टीका ) । मूल ग्रन्थकार ने तो ग्रन्थ का नाम 'गोम्मटसा भी नहीं दिया। उन्होंने तो ग्रन्थ के दूसरे भाग के अन्त में इसका नाम गोम्मटसंग्रहसूत्र ( कर्मकाण्ड गा. ६६५, ६६८) या गोम्मटसूत्र दिया है। गोम्मटसार नाम भी टीकाओं में ही पाया जाता है। टीकाकारों ने एक और नाम भी दिया है- पंचसंग्रह (म. प्र. टीका पृ. २,३ ) किन्तु यह नाम क्यों दिया गया, यह नहीं बताया गया। सम्भवतः अमितगति श्राचार्य के पंचसंग्रह को देख कर और उसी के अनुरूप कथन इसमें देख कर यह नाम दिया गया हो ।' ग्रन्थकर्ता इस ग्रन्थ के रचयिता श्रीमन्नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती हैं। आपने पुष्पदन्त भूतबली श्राचार्य द्वारा रचित षट्खण्डागम सूत्रों का गम्भीर मननपूर्वक पारायण किया था। इसी कारण आपको सिद्धान्तचक्रवर्ती की उपाधि प्राप्त हुई थी । ग्रामने स्वयं भी उल्लेख किया है कि जिस प्रकार भरत क्षेत्र के छह खण्डों को चक्रवर्ती निर्विघ्नता से जीतता है, उसी प्रकार प्रज्ञारूपी चक्र द्वारा मैंने भी ग्रह खण्ड (षट्खण्डागम - जीवस्थान, खुद्दाबन्ध, बन्धस्वामित्व विचय, वेदना, वर्गणा और महाबन्ध) निर्विघ्नतया साधित किये हैं | नेमिचन्द्राचार्य अपने विषय के असाधारण विद्वान् थे । आप देशीय गण के प्रसिद्ध आचार्य श्रीर गणितशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे । गोम्मटसर पर कई विद्वानों ने टीकार्य लिखी हैं। श्री माधवचन्द्र १. जैन साहित्य का इतिहास प्रथमभाग पृ० ३८६ ( गणेशवर्णी जैन ग्रन्यमाला ) २. जह चक्के य चक्की छक्खंड साहियं श्रविग्र । तह महचवण मया छकड साहियं सम्मं ।। ३६३ || गो. क. का. [८]Page Navigation
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