Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 2
________________ प्रथम संस्करण से: * अन्तर्ध्वनि * गिरिनगर (गिरनारक्षेत्र) की गुफामें रहनेवाले धरसेनाचार्यके मनमें कालदोषसे हीयमान श्रुतपरम्पराको देख यह विचार उत्पन्न हुआ कि यदि वर्तमान श्रुतको लिपिबद्ध नहीं किया तो इसकी परम्परा विच्छिन्न हो जावेगी। फलतः उन्होंने महिमानगरी के यतिसम्मेलनमें उपस्थित साधुओंके पास इस आशयका पत्र भेजा कि “मेरी आयु उत्तरोत्तर क्षीण हो रही है अतः किन्हीं दो बुद्धिमान् साधुओं को मेरे पास भेजिये, जिन्हें मैं अपने आपमें स्थित मकाप्राभुतगन्थमा उपदेश कर स.; अन्यथा मेरे पश्चात् वह विद्या लुप्त हो जावेगी।” महिमानगरीके यतिसम्मेलनमें उपस्थित मुनियोंने धरसेनाचार्यके पत्रपर बड़ा गौरव किया और दो बुद्धिमान् साधुओंको गिरिनगरकी ओर भेजा। वे दो साधु पुष्पदन्त और भूतबली नामसे जाने जाते हैं। __ गिरिनगर पहुंचनेपर धरसेन ने दोनों साधुओंकी बुद्धि-परीक्षाकर उन्हें सत्कर्मप्राभूतका अध्ययन कराया तथा अध्ययनके पश्चात् उन्होंने ग्रन्धरचना की। पुष्पदन्त और भूतबली आचार्यकी ये रचनाएं जीवट्टाण, खुद्दाबन्ध, बंधसामित्तविचय, वेयणाखंड, वग्गणाखंड और महाबन्ध नामसे प्रसिद्ध हुईं। उपर्युक्त छहों खण्ड मिलकर षट्खण्डागभ कहलाते हैं। वीरसेनस्वामी ने इनपर धवलानामकी टीका लिखी। नेमिचन्द्राचार्थने इन छह खण्डोंकी अच्छीतरह साधना की थीं। कर्मकाण्डमें उन्होंने स्वयं लिखा जह चक्केण य चक्की छक्खंड साहियं अविग्घेण । तह मइ चक्केण मया छक्खंडं साहियं सम्मं ।।३६७ ।। अर्थात् जिसप्रकार चक्रवर्ती अपने चक्ररत्नसे भरतक्षेत्रके छहखण्डोंको निर्विघ्नरूपसे साधता है-अपने आधीन करता है उसीप्रकार मैंने अपने बुद्धिरूपी चक्ररत्नसे छहखण्डोंसहित परमागमको साधा है-अपने आधीन किया है। नेमिचन्द्राचार्य देशीयगणके प्रसिद्ध आचार्य थे। गुरुके रूपमें इन्होंने आचार्य वोरनन्दी,अभयनन्दी, इन्द्रनन्दी तथा कनकनन्दी का बड़ी श्रद्धाके साथ उल्लेख किया है। कुछ उदाहरण देखिये - जस्स य पायपसायेणणंतसंसारजलाहमुत्तिएणो। वीरिंदनंदिवच्छो णमामि तं अभयणंदिगुरुं।।क.का. ४३६ ।। अर्थात् जिनके चरणप्रसादसे वीरनन्दी और इन्द्रनंदीका वत्स अनंतसंसाररूपी सागरसे उत्तीर्ण हो गया, उन अभयनन्दीगुरुको मैं नमस्कार करता हूँ।

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