Book Title: Ganitsara Sangrah Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh View full book textPage 9
________________ भिन्न भागहार ( भिन्नों का भाग) भिन्न सम्बन्धी वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल भिन्न संकलित ( भिन्नात्मक श्रेढियों का योगकरण ) भिन्न व्युत्कलित (श्रेढिरूप भिन्नों का व्युत्कलन) ... कलासवर्ण षड् जाति (छः प्रकार के भिन्न ) ... भागजाति (साधारण भिन्नों का जोड़ और घटाना)- -- प्रभाग और भागभाग जाति (संयुत और जटिल भिन्न ) भागानुबन्ध जाति (संयव भिन्न) - भागापवाह जाति (वियवित भिन्न) भागमातृ जाति (दो या अधिक प्रकार के भिन्नों से संयुक्त भिन्न ) ... ४. प्रकीर्णक व्यवहार (भिन्नों पर विविध प्रश्न ) भाग और शेष जाति मूल जाति शेषमूल जाति द्विरग्र शेषमूल जाति अंशमूल जाति भाग संवर्ग जाति ऊनाधिक अंशवर्ग जाति मूलमिश्र जाति भिन्न दृश्य जाति ५. त्रैराशिक व्यवहार अनुक्रम त्रैराशिक व्यस्त त्रैराशिक व्यस्त पंचराशिक व्यस्त सप्तराशिक व्यस्त नवराशिक गति निवृत्ति पंचराशिक, सप्तराशिक, नवराशिक भाण्डप्रतिभाण्ड ( विनिमय) क्रय विक्रय मिश्रक व्यवहार संक्रमण और विषम संक्रमण पंचराशिक विधि वृद्धि विधान (ब्याज) प्रक्षेपक कुट्टीकार ( समानुपाती भाग) वल्लिका कुट्टीकारPage Navigation
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