Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 5
________________ वही व्यक्ति जब पथ प्रदर्शक के निर्देशों का पुनश्च पालन कर पथ पर चलना प्रारम्भ कर देता है तो इच्छित स्थान पर पहुंच जाता है । I I मोक्षमार्ग के लिये भी यही नियम है । जो आत्म 'मग्गदयाणं' विरूद्ध धारक तीर्थंकर परमात्मा के निर्देशानुसार साधकावस्था में जीवन व्यतीत करता है वह आत्मा निर्विघ्नता पूर्वक मोक्ष नगर में अनंतकाल के लिये पहुंच जाता है । अक्षय स्थिति को पा लेता है । और जो आत्मा चलते-चलते स्वेच्छा को स्वमति कल्पना को अग्र स्थान देकर मार्ग से विपरीत मार्ग पर मुड़ जाता है, भटक जाता है, चार गति रूप अटवी में अटक जाता है एवं लोभ लालच रूप विष वृक्षों पर लटक जाता है । शिथिलाचारी बन जाता है I 1 I I उस आत्मा को पुनश्च मोक्षमार्ग के प्ररूपकों का पथ जब प्रशस्त लग जाता है । उस पथ पर चलने की प्रबलेच्छा प्रगट हो जाती है । उनके निर्देशानुसार पथ पर चलना प्रारंभ कर देता है । शिथिलाचार छोड़कर शास्त्रोक्त आचारों का पालन प्रारंभ कर देता है तब वह मुक्तिपुरी में अति शीघ्रता से पहुंच जाता है । मोक्षमार्ग के पूर्ण रूप से पथिक बने हुए आत्मा को गच्छाचार पयन्ना का अध्ययन अवश्य करवाना चाहिये । चारित्र लेने के बाद चारित्र में अतिचार रूपी छिद्रों को दूर करने हेतु, स्वयं र हुए शिथिलाचार को दूर करने हेतु, धर्म श्रद्धा को विशेष सुदृढ़ बनाने हेतु, आचार पालन में प्रतिदिन शुद्धि विशुद्धि लाने हेतु, गच्छाचार पयन्ना का अध्ययन, वांचन, मनन, चिंतन सभी को अवश्य करना है । गच्छाचार पयन्ना के माध्यम से हम हमारे आत्मा को शुद्ध विशुद्ध बनाकर मोक्ष सुख को प्राप्त करें इसी अभिलाषा के साथ । जावरा श्रावण सुदी ६, सं. २०४८ शुभम् शुभम् शुभम् ४ जयंतसेन सूरि

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