Book Title: Gacchayar Ppayanna Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay Publisher: Amichand Taraji Dani View full book textPage 4
________________ "दो शब्द" गच्छारं सुणित्ताणं, पठित्ता भिक्खु भिक्खुणी। कुणंतु जं जहा भणियं, इच्छन्ता हियमप्पणो ॥१३७ ॥ "गच्छाचार - पयन्ना" साधु साध्वीयों की मर्यादा स्वरूप यह गच्छाचार पयन्ना सद्गुरु भगवंत के पास अर्थरूप में श्रवण कर स्वात्मकल्याणकायी मुनि भगवंतों को गच्छाचार पयन्ना में वर्णित आचारों का समाचरण करना चाहिये। गच्छाचार-पयन्ना में साधु-साध्वीयों के आत्मकल्याण के लिये अक्षय अचल स्थान प्राप्ति हेतु, परतंत्रता के प्रगाढ बंधनों से परिपूर्ण मुक्ति प्राप्त करने, आच्छादित आत्मगुणों का प्रगटीकरण कर स्वातंत्र्य पाने, के लिये सुयोग्य सरलतम मार्गदर्शन किया गया है। तीर्थंकरों द्वारा प्ररुपित संस्थापित शासन आत्मा को अरूपी,अवर्णि,अगंधी, अरसी, अस्पर्शी बनाने का कार्य अनंतकाल से मोक्षमार्ग की प्ररूपणा के द्वारा कर रहा है। ___ राह / मार्ग पर चलने वाला राही मार्ग दर्शक के निर्देशानुसार चलता है तो निर्विघ्नता पूर्वक इच्छित स्थान पर पहुंच जाता है । पथ पर चल रहा पथिक पथ प्रदर्शक के निर्देशों की अवहेलना, अनादर कर स्वेच्छा को स्थान दे देता है । तब वह मार्ग को छोड़कर कहीं विपरीत मार्ग पर भटक जाता है, अटवी में कहीं अटक जाता है या फिपीक फल वान हनुलटक जाता है। છે નજરPage Navigation
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