Book Title: Eso Panch Namukkaoro
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 113
________________ शारीरिक स्वास्थ्य और नमस्कार महामंत्र : ६३ पांच इन्द्रियां हैं और पांच उनके विषय हैं। उनका आलंबन लें। हम इन्द्रियों की सूक्ष्म शक्तियों से परिचित नहीं हैं, उनकी स्थूल शक्तियों से परिचित हैं। यदि उनकी सूक्ष्म शक्तियों से परिचित होना चाहें तो हमें उन पर प्रयोग करना होगा। हमने पुद्गल के गुणों का स्थूल रूप देखा है, जाना है। यदि हमें सूक्ष्म जगत् की यात्रा करनी है तो उनके सूक्ष्म रूप को भी समझना होगा, उसकी साधना करनी होगी। ___ महर्षि पतंजलि ने विषयवती साधना का सुन्दर विवरण दिया है। मन को स्थिर रखने के लिए इसका आलंबन लिया जाता है। इससे इन्द्रियों की शक्ति विकसित होती है। इससे छोटे-मोटे साक्षात्कार होते हैं। जव तक साधना करने वाले व्यक्ति में, ध्यान करने वाले व्यक्ति में अपना अनुभव नहीं जागता, तब तक वह साधना के लिए समर्पित नहीं हो सकता। साधना के लिए वही व्यक्ति समर्पित हो सकता है, जिसे अपना अनुभव हो जाए। अपना अनुभव हुए बिना साधना का मार्ग प्रशस्त नहीं होता। जिह्वा एक इन्द्रिय है और उसका विषय है रस। उस रस को भी ध्यान का विषय बनाएं। जिह्वाग्र पर ध्यान करें। इससे रस-चेतना, रस-संवेदना जागृत हो जाएगी। फिर जिह्वाग्र पर ध्यान करते ही जो चाहेंगे, उस रस का स्वाद आने लगेगा। पांच मिनट के ध्यान से ऐसी स्थिति नहीं बन सकती। जो व्यक्ति इस संवेदना को प्राप्त करना चाहे, वह पहले तेले की तपस्या करे और उस तपस्या में तीन दिन तक जिह्वाग्र पर ध्यान करे। अवश्य ही उसकी रस-संवेदना जाग जाएगी। जिह्वा के मध्यभाग में स्पर्श का संवेदन जागता है। आंख पर ध्यान करें, आंख का संवेदन जाग जाएगा। समय कुछ लंबा होना चाहिए। अंधेरे में भी दीखने लग जाएगा। घोरतम अंधकार में भी उसे वैसा ही दिखाई देगा जैसा प्रकाश में दीखता है। कान का संवेदन जगाने पर दूर की बातें सुनाई देने लग जाती हैं। प्रश्न होता है-दो आने के केले को खाकर केले का स्वाद जाना जा सकता है तो फिर तीन दिन का उपवास और निरन्तर जिह्वा के अग्रभाग पर ध्यान करने का कष्ट क्यों करना चाहिए ? यह प्रश्न अनेक बार आता है। वह संवेदन बुद्धिगम्य होता है, अनुभवगम्य नहीं होता। साधक को बुद्धि की सीमा को तोड़कर अनुभव की सीमा पर आना पड़ता है। हम जानते हैं कि पदार्थ से सुख मिलता है, वस्तु को खाने से सुख मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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