Book Title: Eso Panch Namukkaoro
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 145
________________ जिज्ञासितम् : १२५ हैं। इनकी चिकित्सा विद्युत् के संतुलन से की जाती है। प्रश्न—जिस ध्यान में आप महामंत्र का प्रयोग करते हैं वह तो केवल ध्वनि की तरंग मात्र ही है। ऐसी ध्वनि-तरंग एक, दो, तीन—इस शब्दावली से भी पैदा की जा सकती है। परिणाम भी वही आता है जो मंत्रध्वनि से आता है। फिर हम किसी भी शब्द को महामंत्र क्यों नहीं मानें ? उत्तर-मंत्र जब शब्द से अशब्द तक पहुंचता है तब उसमें शक्ति पैदा होती है। एक, दो, तीन जब तक शब्द हैं तब तक शक्ति शून्य हैं। इन अंकों के उच्चारण से भी कुछ परिणाम आता है, किन्तु वह मंत्र से होने वाले परिणाम के समक्ष नगण्य है। मंत्र का जो परिणाम आता है वह इस उच्चारण से परे जब मंत्र मनोमय भूमिका में चला जाता है, मानसिक उच्चारण बन जाता है और उससे भी आगे प्राण के स्तर पर पहुंचता है, प्राणमय बनता है, तब आता है। वहां पहुंचने पर उसमें असीम शक्ति पैदा होती है। यदि मैं केवल यह प्रतिपादन करता कि मंत्र-शब्द के उच्चारण मात्र से सब कुछ होता है तो वह प्रतिपादन निस्सार होता । प्रश्न --मंत्र शब्दात्मक होता है। शब्द की तरंगों से मंत्र का लाभ मिल जाता है या उसकी अर्थ-चिन्ता भी आवश्यक है ? उत्तर-मंत्र के शरीर से हम यात्रा प्रारंभ करते हैं और मंत्र की आत्मा तक पहुंच जाते हैं। मंत्र का शरीर है शब्द और मंत्र की आत्मा है अर्थ । हम केवल मंत्र के शरीर-शब्द को ही मंत्र न मान लें। उसकी जो आत्मा है. उसकी जो अर्थात्मा है उसे भी हमें समझना है। मंत्र-शास्त्र में केवल शब्द को मंत्र नहीं माना है। मंत्र तब होता है जब वह अर्थात्मा से जुड़ा होता है। मंत्र की साधना करने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह पहले मंत्र के शरीर—शब्द का स्पर्श करे और फिर उसके माध्यम से उसकी आत्मा-अर्थ तक पहुंचे। ये दोनों मंत्र की सीमा में आते हैं। भले हम अगले चरण को प्रेक्षा मान लें, किन्तु मंत्र का जो पूरा न्यास है, फैलाव है, वह शब्द से अशब्द तक का है। शब्द एक साधन है। शब्द की ध्वनि-तरंगें प्रकंपन पैदा करती हैं। किन्तु जो परिणाम होना चाहिए, वह नहीं होता। एक बार किसी व्यक्ति ने विवेकानन्द से कहा-‘मंत्र, बेकार है। शब्दों में शक्ति ही क्या है ?' विवेकानन्द ने कहा- 'बड़े बेवकूफ हो, मूर्ख हो।' इतना सुनते ही वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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