Book Title: Eso Panch Namukkaoro
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 146
________________ १२६ : एसो पंच णमोक्कारो व्यक्ति तमतमा उठा। उसने कहा---'स्वामीजी ! आप इतने महान् संत होकर ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं?' विवेकानन्द बोले---'अभी तो तुम कह रहे थे कि शब्द में क्या पड़ा है। शब्द का कोई परिणाम नहीं होता।' उसने स्वीकार कर लिया कि शब्द का परिणाम होता है। प्रश्न—आत्मा शुद्ध चैतन्य है। उसमें से इतनी विकृतियां कैसे निकलती ___ उत्तर—बच्चा जब जन्म लेता है तब बिल्कुल साफ होता है। किन्तु जब वह घर के वातावरण में रहता है, गाली देना सीख जाता है, गुस्सा करना सीख जाता है। सब कुछ सीख जाता है। हमारा संसार परमाणुओं से आक्रान्त है। उस परमाणुमय संसार में रहने वाला आत्मा भी विशद्ध कैसे रह पाता है ? मिश्रण से सारी अशुद्धि आती है। इसीलिए मंत्र-साधना द्वारा हम ऐसा कवच तैयार करते हैं कि बाहर का कोई प्रभाव ही न हो। आत्मा तब अपने शुद्ध रूप में अपने-आप रहेगी। प्रश्न-आपने बताया कि नमस्कार महामंत्र की आराधना अनेक रूपों में की जाती है। जैसे—अर्हम्, ओम्, असिआउसा आदि । एक मंत्र-साधक को क्या इन सबमें एक ही शब्दावली का चयन करना चाहिए ? उसको किस विधि-विधान का पालन करना पड़ता है ? ____ उत्तर---महामंत्र की उपासना विभिन्न रूपों में की जाती है, किन्तु इनका चुनाव इस आधार पर किया जाता है कि मंत्रसाधक के सामने प्रश्न क्या है ? मंत्र साधना का उसका लक्ष्य क्या है ? उसे निश्चय करना पड़ेगा कि वह मन की किस शक्ति को जगाना चाहता है ? उसके आधार पर ही महामंत्र के विभिन्न रूपों का चुनाव होगा। ___ यदि कोई साधक तीन चैतन्यकेन्द्रों को जागृत करना चाहता है तो उसे महामंत्र के 'ओम्' रूप की साधना करनी होगी। वह चाहता है कि उसका दर्शनकेन्द्र, ज्ञानकेन्द्र और आनन्दकेन्द्र—तीनों केन्द्र जागृत हों तो उसे 'ओम्' का तीन रंगों के साथ उन केन्द्रों में ध्यान करना होगा--- दर्शनकेन्द्र पर लाल, ज्ञानकेन्द्र पर श्वेत और आनन्दकेन्द्र पर पीला। तीनों केन्द्र सक्रिय हो जाएंगे। कोई साधक केवल दर्शनकेन्द्र और ज्योतिकेन्द्र को जागृत करना चाहता है तो उसे महामंत्र के 'ह्रीं' रूप की आराधना करनी होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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