Book Title: Eso Panch Namukkaoro
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 161
________________ परिशिष्ट : १४१ २४. ललाट पर एसो पंच णमोक्कारो २५. कण्ठ पर सव्व पावप्पणासणो २६ वक्षस्थल पर मंगलाणं च सव्वेसिं २७. नाभि पर पढमं हवइ मंगलं ४. अष्टदल वाले कमल की कल्पना कर कर्णिका में प्रथम पद (णमो अरहंताणं) तथा शेष आठ पद यथास्थान रखकर नवकार मंत्र का जाप करना चाहिए। पुरुषाकार की कल्पना कर बायें पैर के अंगूठे पर एक कमल की कल्पना करनी चाहिए जिसमें नौ पद यथास्थान उल्लिखित हों। दुसरा कमल दायें पैर के अंगूठे पर स्थापित करना चाहिए। इस प्रकार हृदय तक १२ स्थान होते हैं, बारह कमलों की स्थापना होती है। नौ बार जाप करने से ६४१२=१०८ नवकार मंत्र की एक माला सम्पन्न होगी। ५. दो कान, दो आंखें, नाक के दो छिद्र और एक मुंह-इन सात छिद्रों को सात अंगलियों से ढंककर ‘णमो अरहंताणं' का जाप करें। इससे दिव्यनाद, दिव्य घण्टारव, दिव्य संगीत, दिव्यरूप, दिव्य गंध, दिव्य रस का अनुभव होता है। ६. पांच पदों को पांच इन्द्रियों से युक्त करना१. णमो अरहंताणं कानों से अर्हत् की ध्वनि को सुनने का अभ्यास। दिव्य श्रवण की शक्ति का विकास। २. णमो सिद्धाणं सिद्ध आत्म-सौन्दर्य से परिपूर्ण है। उन्हें आंखों का विष बनाएं। दर्शन-शक्ति का विकास। ३. णमो आयरियाणं आचार्य के पंचाचार से पवित्र देह से सुगंध फैलती है। नाक का विषय बनाएं, दिव्य-सुरभि का विकास। ४. णमो उवज्झायाणं स्वाध्याय का रस अमृत है। उपाध्याय इसके प्रतीक हैं। स्वादेन्द्रिय का विषय बनाएं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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