Book Title: Eso Panch Namukkaoro
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 149
________________ जिज्ञासितम् : १२६ विभिन्न यंत्रों का भी विकास हुआ। किन्तु प्रस्तुत प्रसंग ही इतना अधिक लंबा हो गया कि मैं इन यंत्रों के विषय में कुछ नहीं कह सका । नमस्कार महामंत्र की व्याख्या जिस प्रकार विभिन्न मंत्रों के साथ की जाती है, वैसे ही विभिन्न यंत्रों के साथ भी की जाती है। मैं इस विषय में और कभी प्रकाश डालूंगा। प्रश्न—नमस्कार महामंत्र का ध्यान यदि ज्ञानकेन्द्र में श्वेत वर्ण के साथ किया जाए तो कैसी आकृति होगी ? . ___ उत्तर—ज्ञानकेन्द्र में पुरुष की आकृति का ध्यान करना चाहिए। मस्तिष्क में स्फटिकमय, निर्मल और स्वच्छ पुरुषाकार की कल्पना की जाए। कल्पना इतनी प्रवल हो कि वह सफेद मूर्ति साक्षात् दीखने लगे। वर्ण के साथ उस पुरुषाकृति की कल्पना को पुष्ट करना चैतन्य जागरण की प्रक्रिया है। आंख से देखना एक बात है और कल्पना का चित्र बनाकर मानसिक आंख से देखना दूसरी बात है। कल्पना का चित्र बनाना, संकल्प को पुष्ट करना और यथार्थ तक ले जाना—इस सूत्र को हम याद रखें--कल्पना, संकल्प, और यथार्थ । प्रश्न—क्या ध्यान और भक्ति में भेद है ? उत्तर-ध्यान और भक्ति में भेद भी है और अभेद भी है। यदि भक्ति को केवल उपासना का रूप माना जाए, स्तुति करना, भजन करना, नाम जपना मात्र माना जाए तो वह ध्यान से सर्वथा भिन्न है। भक्ति को यदि आध्यात्मिक रूप में माना जाए तो वह ध्यान से अभिन्न है। आचार्य शंकर ने “विवेक चूड़ामणि' नामक ग्रन्थ में भक्ति की बहुत सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की है ‘स्वस्वरूपानुसन्धानं, भक्तिरित्यभिधीयते ।' -~-अपने स्वरूप का अनुसंधान करना भक्ति है। इस दृष्टि से भक्ति और ध्यान अभिन्न अंग बन जाते हैं। प्रश्न-मन को अधिक समय तक संवेदनशील कैसे बनाया जा सकता उत्तर—जैसे कम समय तक उसे संवेदनशील बनाया जा सकता है वैसे ही उसे अधिक समय तक संवेदनशील बनाया जा सकता है। कम या अधिक समय की बात 'आंच' पर निर्भर करती है। चाहे कोई चावल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178